6 - रास्ता इधर है ।


उत्तर प्रदेश की मैदानी भैागोलिक स्थितियों के सापेक्ष पर्वतीय क्षेत्र की परिस्थितियाॅ बिलकुल भिन्न हैं।उत्तराखण्ड राज्य के निर्माण पर इस क्षेत्र के निवासियों की अवधारणा रही थी कि उत्तर प्रदेश के मैदानी अधिभाग के साथ अपेक्षाकृत छोटे से पर्वतीय आॅचल का प्रवन्धन ब्यावहारिक और न्यायप्रद तरीके से नहीं हो पायेगा। लोक सेवा की अवधि में यह विचार कई बार मेरे मन में भी उभरते रहे,लेकिन सन् 1974 में यह विचार और भी पुष्ट हुआ, जब हिमाचल प्रदेश के निर्माता और तत्कालीन मुख्य मंत्री डा0यशवन्त सिहॅ परमार ने रामपुर में केन्द्रीय मंत्री के साथ हुई वार्ता के सन्दर्भ में केवल एक गिलास पानी पर ही मुझसे बातचीत में अपनी बेवाक राय जाहिर कर दी। तब नेता विशेष के गुणगान का समय नहीं था,कर्म ही पूजा मानी जाती रही होगी, अन्यथा जिस दल के वे नेता थे,यू0पी0 में उसी की सरकार से अलग हो कर उत्तराखण्ड की सरकार का गठन करवाने के लिये क्यों विचार दे डालते।सायद इस लिये कि वे पहाड.की पहाड.जैसी हालतों सें दो-चार हो चुके थे।डा0परमार से 27 वषर््ा पूर्व हुई वार्ता के पश्चात् वर्ष 2000 में आखिर पृथक उत्तराखण्ड राज्य का निर्माण हुआ, यहाॅ के निवासियों में नई आशा का संचरण होना अप्रत्यासित नहीं था।क्यों कि बड़े उद्योग न सही हौर्टिको और लधु उद्योगों पर तो रोजगार सृजन की कार्यवाही तो की ही जा सकती थीं। विदयुत निर्माण और पर्यटन उदयोग आर्थिक सम्बल दे सकता था।अब समय कम ब्यतीत नहीं हो गया है।लेकिन उसके पश्चात् भी ये क्या -कई गाॅव खाली हो चुके हैं।उत्तराखण्ड की स्थिति इतनी गम्भीर कि रोजगार के लिये लेागों को धर छोड़ देने पड़े।कुछ गाॅवों में केवल वृद्धजन ही दिखाई दे रहें हैं।पलायन ने दौनंो ओर भारी असन्तुलन उत्पन्न कर दिया है।पर्वतीय क्षेत्रों में बन्दर लंगूर भालू,खरगोस,हिरन फसलों को बरवाद कर रहे हैं।रही-सही खेती से किसानों में अन्निच्छा का भाव उत्पन्न होने पर उनके युवा पर्वतीय क्षेत्रों से पलायन कर रहे हैं।वहीं देहरादून, हरद्वार, उधमसिहॅनगर, रामनगर, काशीपुर और दिल्ली में भी आवादी का धनत्व अत्यधिक हो गया तथा पर्वतीय क्षेत्र की जन संख्या विरल होती चली गई है।सोचना होगा क्या पलायन की बयार उत्तराखण्ड में सरोकारों, संस्कृति और इस क्षेत्र की पहचान का सम्बिलियन दिल्ली, देहरादून की बहुसंस्कारी संस्कृति में करते हुये अस्ताचल की ओर उन्मुख तो नहीं कर रही है।

अगर यह उनकी फैसन परस्ती है तो कुछ नहीं किया जा सकता,पर अनुत्पादकता और बेरोजगारी तथा असुविधायें बाधक हों तो रास्ते सुगम्य हैं।बस सरकार इस भावना के अनुरूप कार्य कर दे,और पर्वतीय क्ष़ेत्र के निवासी एक चित्त पहले अपनी कृषि योग्य भूमि की चैकबन्दी करा दें।

पर्वतीय क्षेत्रों में सीढ़ीनुमा खेत छितरी हालत में हैं। भ्ूा-स्वामी स्व्ेाच्छा के साथ खेती नहीं कर सकता है ,लेकिन भ्ूामि एक ही स्थान पर मिल जाय तो;-

1- स्वेच्छा से अधिकाधिक सब्जियाॅ,दालें,फल,फूल,जड़ी-बूटी रबी और खरीफ की फसलें मौषम के अनुरूप और हर मौषम में कुछ न कुछ उगाया जा सकता है।अपनी इच्छा के अनुरूप मुर्गीपालन,मौनपालन का भी कार्य निर्वाध किया जा सकता है।प्रश्न हो सकता है कि पर्वतीय़ क्षेत्र में सिंचाई के लिये जल की समस्या है, तो विदित हो जाना चाहिये कि एैसी फसलों के लिये जमीन पर नमी होनी चाहिये,अधिक जल की आवश्यकता नहीं।क्योंकि ड्र्पि पद्धति से सिंचाई सुगमता के साथ की जा सकती है।लेकिन उत्तराखण्ड में एैसे स्थानों पर जहाॅ लगातार जल सुलभ है,अनुपातिक रूप से 6.58प्रतिशत से भी कम एैसी भूमि है जहाॅ कि-धान की खेती के अलावा मत्स्य पालन भी किया जा सकता है।जब कि 93.42 प्रतिशत भूमि केवल वर्षा के जल पर ही आश्रित है। पर उत्तराखण्ड के निवासियों को यह समझना भी आवश्यक है कि रु030प्रति की0ग्रा0मूल्य के धान के स्थान पर रु070 प्रति की0ग्रा0 की दाल या अन्य सब्जी ही क्यों न उगा दी जाय।

यहाॅ केवल इस बात से उत्पादक को अवगत कराना होगा कि खेती के लिये जल की उपलब्धता,स्थान विशेष की जलवायुु-यथा शीत,शीतोष्ण और उष्णता ध्यान में रखने व मिट्टी का परीक्षण करा कर कुछ वैज्ञानिक तरीको कों भी आत्मसात कर लिया जाय,जो किसी के लिये भी बहुत ही सरल है।उसके पश्चात् उत्पादकों को फसलें उगाने पर अचम्भित कर देने वाले सुपरिणाम स्वयं दिखाई देंगेे।हिमाचल प्रदेश भी पहले पंजाब का ही एक भाग था।यह सर्व विदित है कि हिमाचल प्रदेश और पंजाब भारत के अत्यन्त हरे भरे फल फूल और अन्न उत्पादक प्रदेश हैं। क्यों कि वहाॅ भू-स्वामी को सन्1920 में ही चकबन्दी के पश्चात् निर्वाध रूप से कार्य करने और फसल, सब्जी, फूल, दाल, फल उगाने का मार्ग प्रशस्त कराया जा चुका था।

लेकिन यहाॅ उत्तराखण्ड में किसानों द्वारा अपनी भूमि पर स्वतन्त्र रूप से कार्य करने या फसलें उगाने का कार्य तभी सम्भव है,जब प्रत्येक भ्ूा-स्वामी के सभी खेतों का रक्वा निकाल कर कन्सौलिडैशन की टीम कुल योग के रक्वे के बराबर भूमि एक ही स्थान पर आवन्टित कर दे।इस कार्य के लिये शासन को बजट में प्राविधान करना होगा और उसके पश्चात् कन्सौलिडेशन की टीमों का गठन करना होगा। कन्सौलिडेशन करने वाली राजस्व की टीमें प्रत्येक भू-स्वामी की भूमि का सीमाॅकन भी कर देंगी।यहाॅ पर इस बात का विशेष ध्यान रखना होगा कि ग्राम के अन्दर बच्चों के लिये क्रिड़ा- स्थल,पंचायत घर,पेय जल कूड़ा करकट निस्तारण के लिये उपयुक्त स्थान सुलभ रहे और शौचालय तथा स्नानागार की संयुक्त सुविधा रहे।गाॅव के प्रयुक्त जल को पुनः संग्रहीत कर एक छोटा तालाब भी सुलभ रहें एवं ग्रामीणों के आपसी सरोकार यथापूर्व बने रहें।

कार्य कठिन है दुष्कर नहीं।यह सम्भव है ग्रामीण क्षेत्रों में लोग चैकबन्दी के अधीन नई भू-ब्यवस्था के कारण भ््राान्ति की स्थिति में हों।इसलिये सरकार पहले ग्राम स्तर पर चकबन्दी के लाभ से अवगत कराने के लिये समाचार पत्रों,इलैक्ट्र्ौ्निक्स मीडिया तथा कृषि विभाग,बागवानी विभाग,मत्स्यपालन विभाग तथा स्वयं सेवी संगठनों की टीमों का गठन कर दे,जब लोग जान लेंगे कि चकबन्दी के पश्चात् लोगों को अत्यधिक सुविधा हो जायेगी और वे अपनी सुविधा के अनुसार कोई भी कार्य कर सकेंगे तथा किसी भी समय किसी भी प्रकार का उत्पादन ले सकेंगे। एैसा करने पर वे स्वयं चैकबन्दी के लिये लालायित हो जायेंगे। उसके पश्चात् चैकबन्दी का क्रियान्वयन सुगम हो जायेगा।

पर्वतीय क्षेत्रों में फल फूलों, सब्जियों तथा फसलों पर बन्दर,भालू,लंगूर,सुवर,हिरन,खरगोस, साही आदि बनैले जीवों द्वारा बरवादी की चर्चायें तो समाप्त ही नहीं हो रही हैं। इस लिये एैसे जीवों से फसलों को सुरक्षित रखने के लिये प्रत्येंक किसान अपने चैक पर मोटे तार की जाली भी प्रयोग में ला सकता है।उसके लिये सरकार सबसिडी या अन्य सुविधाओं का प्राविधान कर दे और बदले में कृषि सम्बन्धी अन्य मदों की सहायता में कटौती भी कर दे तो सरकार के लिये भी कार्य ब्ययसाद्ध्य हो जायेगा व किसानों की फसलों को सुरक्षा मिल जायेगी।

पर्वतीय क्षेत्रों में फसलों की कटाई हो या घास काटने का कार्य, निकाई गुड़ाई का कार्य हो अथवा अनाज को साफ कर भण्डार में रखने का श्रम,और कठिनतम परिश्रम गोबर की खाद को गौशाला से दूर-दूर चढाई-उतार को पारकर पीठ अथवा सिर पर ढो कर पहुॅचाना या घास आदि पहॅुचाना हो,पर्वतीय गृहणियों को ही झेलना होता है।चकबन्दी पर एैसी जी तोड़ मेहनत से भी मुक्ति पाई जा सकेगी।क्यों कि पर्वतीय क्षेत्रों में ढालदार और सीढ़ीनुमा खेतों पर ही फसलें उगाई जाती है ।इस लिए चैक के शीर्ष में मवेशियों के लिये गौशाला व एक अन्य कक्ष का निर्माण फार्म हाउस के लिये तैयार कर पूरे चैक के लिये खाद तैयार करने और कुछ समय के लिये अनाज या कृषि उत्पादों और घास आदि के एकत्रीकरण के लिये किया जा सकता है तथा सम्पूर्ण चैक पर एक ही दिन में खाद को उडेल कर पहुॅचाया जा सकता है।एैसी स्थिति में महिलाओं को कठिनश्रम से मुक्ति मिल जायेगी और चैक पर लगातार पर्यवेक्षणीय कार्यवाही सफलता के साथ सम्पन्न की जा सकेगी।आराम के साथ ही जिसका सीधा उत्तम लाभ किसान को मिलेगा। एैसी स्थिति में लगातार उत्पादन होता रहेगा,यह ठीक है कि कुछ किसान किसी कोटि की फसलों अथवा दालों या फलों को बहुत अधिक मात्रा में उगा देंग,े लेकिन कुछ का उत्पादन नगण्य ही कर पायेगे, लेकिन नगण्य रह गई फसलें फल फूल आदि का अधिक उत्पादन अन्य दूसरी कोटि के किसानों की भूमि पर होगा ।तब प्रश्न यह होगा कि जिन फसलों ,फलों और सब्जियों अथवा दालों या शहद का उत्पादन अत्यधिक कर दिया गया है वर्ष भर के लिये अपने निजी उपयोग हेतु संचित करने के पश्चात् अवशेष उत्पादों का क्या किया जाय या उसका लाभ उत्पादन कर्ता को कैसे सुगमतापूर्वक मिल सकेगा और जिन उत्पादों की उसे अत्यन्त कमी है वह कैसे सुगमता पूर्वक उपलब्ध हो पायेगा।

उसके लिये ग्राम स्तर पर एक समिती का गठन करना आवश्यक होगा।ग्राम की परिसीमा के अन्र्तगत प्रत्येक भ्ूा-स्वामी उसका सदस्य होगा। जिनके द्वारा स्टोर कीपर,लेखाकार और प्रवन्धक का चयन किया जायेगा। प्रति माह का सम्प्रेक्षण गाॅव के ही सदस्यों में से किसी भी एक सदस्य या उसके द्वारा नामित ब्यक्ति के द्वारा किया जायेगा। लेकिन वर्ष भर में एक ब्यक्ति या उसके द्वारा नामित ब्यक्ति केवल एक ही बार सम्प्रेक्षण की कार्यवाही कर सकेगा।वित्तीय वर्ष के समापन पर सम्पे्रक्षित लेखा का तलपट प्रस्तुत किया जायेगा। समिती को निम्न कार्य यथा समय निष्पादित करने होंगेः-

  • 1- तौल के लिये काॅटे की स्थापना करना।

  • 2- गाॅव के किसान से प्राप्त उत्पादों की तौल करना,सुरक्षात्मक विधि से उसका संचयन संग्रह केन्द्र पर करना और तौल कर ही विपणन समिती के परिवहन तथा विपणन प्रतिनिधी को हस्तान्तरित करना।

  • 3- किसानों से प्राप्त फलों,फूलों ,मुर्गा, मुर्गियों,शहद,मछली,अनाज, सब्जियों,दालों आदि उत्पादों का उल्लेख कर टोकन पर मात्रा का अंकन करते हुए उनके नाम की प्रविष्टी कर जारी करना।

  • 4- उत्पादों के विक्रय हो जाने के पश्चात् जारी हुये टोकन पर प्राप्ति के हस्ताक्षर प्राप्त कर बदले में विक्रीत उत्पादों का मूल्य चैक के माध्यम से विना किसी विलम्ब के भुगतान करना।

  • 5- विक्रीत मूल्य से 2प्रतिशत सेवा कर केन्द्र पर ही समिती द्वारा प्राप्त कर लिया जायेगा और प्राप्त इस राशि से संग्रहण केन्द्र के ब्यय भारों के अलावा ट्र्ासपोर्ट तथा विपणन ब्ययों की प्रति पूर्ति की जायेगी।ग्राम स्तरीय समिती,के द्वारा ब्लौक स्तर की विपणन तथा ट््राॅसपोर्ट समिती का अंश सीधे उनके खाते में जमा किया जा सकेगा।जब कि ग्राम स्तरीय समिती का हिसा भी सीधे उनके खाते में जमा होगा। समितियों के ब्ययों की प्रतिपूर्ति न होने पर कारण और तत्थ्यात्मक रिपोर्ट प्रस्ुतत कर संचालन ब्यय बढाने पर बैठक में बिचार किया जायेगा।

  • 6- ग्राम स्तर पर समिती के द्वारा दुकान का भी संचालन किया जायेगा।जिसमें प्रत्येक सदस्य को विना किसी लाभ के वास्तविक मूल्य पर 0.02प्रतिशत पर औपरेशन शुल्क ही लिया जायेगा।अन्य सामान्य उपभोक्ताओं से वाणिज्यिक ब्यवहार के अधीन लाभ प्राप्त किया जा सकेगा।

  • 7- ग्राम स्तर की यह समिती समय-समय पर मिट्टी की जाॅच करवाने के लिये भ्ूा-स्वामियों से सैम्पल के लिये मिट्टी का एकत्रीकरण कर श्रीनगर या अन्यत्र भू-रसायनज्ञों के समक्ष परीक्षण हेतु प्रेषित करने और आख्या प्राप्त करने का भी कार्य करेगी, जिससे परीक्षित मिट्टी जिस भूमि से ली गई थी उसमें उत्तम परिणाम देने वाली फसल फलों आदि को उगाने की जानकारी मिल जाय।

  • 8- ग्राम स्तर की संग्रहण समिती ग्राम के अन्र्तगत उन सभी भू-स्वामियों के चैक पर सिंचाई के लिये जलसंचरण की ब्यवस्था करेगी। जहाॅ जल सुलभ नहीं है वहाॅ भू-स्वामी के चैक पर ड्र्पि या स्प्रिंकल पद्धति से जल संचरण हो जाय।पर यह भी प्रश्न उत्पन्न होगा कि पहाड़ी क्षेत्रों में जल की अति ही न्यूनता हैं अथवा जल श्रोत सूख चुके हैं आदि-आदि।यह गम्भीरतापूर्वक अवलोकन करने,विचार करने और ब्यवस्था का विषय है- कि आवादी कम ही सही लेकिन गाॅवों में कार्य आज भी वहाॅ पूर्ववत चल रहा है।गाॅव वहीं वसे हैं जहाॅ जल सुलभ है।उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों में कम ही सही लग-भग हर आधे की0मी0 पर छोटा सा श्रोत तो मिल ही जाता है।प्राकृतिक श्रोत से गाॅव के धारे के लिये लाया गया जल प्रात; सायं गाॅव वासियेंा के प्रयोग में आता है,लेकिन पूरे दिन और रातभर निर्वाध बहता रहता है,जंगल या गाॅव से अलग बहते श्रोत का तो प्रश्न ही क्या।इस लिये-

  • क- प्राकृतिक श्रोतों और गाॅव के धारों का जल एक बड़े हौज में संग्रहीत कर पाइप द्वारा अलग-अलग चैक्स पर छोटे सम्पर्क हौजेज से जोड़ दिया जाना चाहिये,जहाॅ से किसान स्वयं ड्र्पि सिस्टम का संयोजन कर लेगा और आवश्यकतानुसार सिंचाई करता रहेगा।

  • ख- वर्षाकाल में पणढालों का जल भी खेत जहाॅ समाप्त हो जाते हैं और जंगल तथा पहाड़ी भाग सुरू हो जाता है वहाॅ सार्वजनिक रूप से पोखर खोद कर जल का संग्रहण किया जा सकता है।जहाॅ से आवश्यकता पड़ने पर हौज के लिये जल लिया जा सकेगा ,तथा हौज चैक्स पर निर्मित छोटे हौज से जुड़ा होने के कारण जल संचरण करता रहेगा,जिससे ड्र्पि तन्त्र क्रियान्वित रहेगा।

  • ग-वर्षाती और सदाबहार छोटे गधेरों में स्वतः तैयार चाल-खालों का सम्वर्धन ग्राम वासियों के लिये अतिरिक्त रूप से प्राकृतिक सिंचाई सहायता होगी।इनका उपयोग भी स्प्रिंकल अथवा ड्र्पि पद्धति से सिंचाई के लिये किया जा सकता है।

  • घ- एैसे गाॅव जहाॅ प्राकृतिक श्रोत सुलभ ही नहीं है और पणढालों तथा चाल खालों का वर्षाती और बहता जल उपयोग में लाया जाना सम्भव ही नही वहाॅ भी बर्षाकाल या शीतकालीन वर्षा के दौरान छतों तथा आॅगन के बहते जल को घर के भूमिगत परिसर में संग्रहीत किया जा सकता है।जो काफी सीमा तक ड्र्पि पद्धति से सिंचाई कार्यों में सहायक हो जायेगा।

ल्ेाकिन हौज निर्माण,पाइप आदि की ब्यवस्था पर पहली बार ब्यय अधिक आयेगा।जिसके लिये ग्राम स्तर पर संग्रहण समिती को कृषि विभाग से सहायता प्राप्त करने के लिये कारगर कार्यवाही करनी होगी।

  • 9- ग्राम की सीमा के अन्र्तगत एैसे भी लोग होंगे जिनके स्वामित्व की भूमि ग्राम की परिसीमा के अन्र्तगत हो,लेकिन अपनी पारिवारिक मजबूरियों अथवा राजसेवा व ब्यवसायिक अनिवार्यताओं के अधीन वह गाॅव से बाहर मैदानी क्षेत्रों या विदेश में निवास कर रहा हो या अपने खेतों में कृषि सम्बन्धी कार्यवाहियाॅ कर उत्पादन करने में समर्थ नहीं हो पा रहा हो।एैसे भू-स्वामियों के चैक पर सुरक्षा,खाद जुताई-बोआई सिंचाई तथा उत्पादों की विक्री का प्रवन्धन सीधे समिती द्वारा मजदूरों की सहायता से किया जाना युक्तिसंगत होगा। लेकिन भू-स्वामित्व का मौलिक अधिकार भ्ूा-स्वामी के अधीन रहने के कारण उसकी भूमि के उत्पाद से प्राप्त होने वाली आय का केवल 10 प्रतिशत ही भू-स्वामी को प्राप्त हो पायेगा, जब कि 90 प्रतिशत सीधे ग्राम स्तर की समिती को प्राप्त होगा।एैसी स्थिति में ग्रामीणों को अपनी भूमि गिरवी रखने,पहले आपसी सामंजस्य पर किसी दूसरे के अधीन छोड़ने और कब्जेवाजी से उत्पन्न होने वाले विवादों से भी मुक्ति मिल जायेगी तथा भू-स्वामी की भूमि आवाद और सुरक्षित रहेगी।अर्थात समिती को तो लाभ ही होगा, लेकिन भू-स्वामी भी लाभान्वित होगा और गाॅव लौटने पर उसे अपनी भूमि आॅशिक लाभ के साथ आवाद रूप में वापस मिल जायेगी।

  • 10- लाभ की स्थिति में पहुॅचने पर समिती ग्राम की परिसीमा में उत्पादकों द्वारा विक्री के लिये लाया गया अनाज फल दाल आदि संग्रहण व भण्डारण के लिये एक स्टोर रूम का भी निर्माण करने पर कार्यवाही करे, ताकि उपभेाक्ताओं की विक्रय योग्य सामग्री सुरक्षित रहें।

  • 11- विकास खण्ड स्तर पर विपणन व परिवहन समिती का गठन आवश्यक हो जायेगा।प्रत्येक चक बन्धित गाॅव का एक प्रतिनिधि ग्राम स्तर की समिती द्वारा सर्व सम्मति अथवा चयनोपरान्त ब्लौक स्तरीय विपणन व परिवहन समिती का सदस्य होगा।यह समिती विकास खण्ड के अन्र्तगत सुयोग्य विणन प्रतिनिधी को कार्ययोजित करेगी।जो प्रतिदिन समाचार पत्रों में प्रकाशित मण्डी भावों का संकलन कर अध्यक्ष महोदय को अवलोकित करायेगा।प्रति दिन के मण्डी भाव अगले वित्तीय वर्ष तक के लिये सुरक्षित रखे जायेंगे।ब्लौक स्तरीय विपणन व परिवहन समिती निम्न प्रकार कार्यों का संचालन करेगीः-

  • अ- प्रत्येक दिन दूरभाष पर मण्डी भावों का संकलन करना।

  • ब- क्षेत्र में उपलब्ध,अनाज,जड़ी-बूटी,फल,सब्जी,शहद,मुर्गा मुर्गी अण्डे मछली आदि सामग्री को बाजार उपलब्ध कराने के आशय से आढ़तियों/निकटस्थ सैन्य/अर्धसैन्य बलों और पुलिस प्रतिनिधियों को थेाक उपभोक्ता के रूप में आमंत्रित करना।

  • स- ग्राम स्तरीय संग्रहण समिती से बिक्रय के लिये दिये जाने वाले अनाजों दालों और सभी वस्तुओं की सूचि प्राप्त कर सामग्री को अच्छे भाव मिलने की स्थिति में आजादपुर,मेरठ,मुरादाबाद आदि मण्डीयों तक पहुॅचाना व मूल्य प्राप्त कर मण्डी स्थल के निकटस्थ स्टेट बैंक की शाखा पर सम्बन्धित ग्राम स्तरीय संग्रह समिती के खाते में जमा करना।


  • उक्त प्रक्रिया के अनुरूप कार्यवाही करने के उपरान्त भूमि सम्बन्धी विवाद कभी उत्पन्न नहीं होंगे।पर्वतीय किसान को सीढ़ीनुमा छितरे खेतों पर उतार चढाव वाले रास्तों पर पीठ और सिर पर बोझ ढो कर ले जाने के कठोर परिश्रम से 90प्रतिशत तक राहत मिल जायेगी। कुछ लोगों को रोजगार भी उपलब्ध होगा लेकिन किसान को उसकी भ्ूामि से आराम के साथ उत्पादित फसलों से जो लाभ लगातार मिलता चला जायेगा उससे पर्वतीय किसान समृद्धी और सम्पन्नता केा प्राप्त करेगा,उसका जीवन आनन्दित हो उठेगा।साथ ही फल,सब्जी,दाल आदि का पर्याप्त उत्पादन उन पर आधारित उद्येागों की स्थापना से क्षेत्र के विकास का मार्ग प्रशस्त करेंगा। यहाॅ का हर वर्ग सम्पन्न होगा,रोजगार की तलास में विभिन्न शहरों में भटकते लोग वापस स्वच्छ जलवायु में अवस्थित अपने गाॅवों में लौट आयेंगे,जहाॅ आय के सभी मार्ग खुले मिलेंगे।पलायन पर स्वतः ही रोक लग जायेगी।हमारा एैसा उत्तराखण्ड आत्मनिर्भर और यहाॅ के वासिन्दों के लिये आनन्ददायी और समृद्ध हो कर ख्याति प्राप्त कर लेगा।एैसा तभी सम्भव हो पायेगा जब सम्पूर्ण उत्तराखण्ड चकबन्दी की कार्यवाही की ओर उन्मुख हो जाय,और जान जाय कि आराम के साथ विकास तथा सम्पन्नता के लिये रास्ता इधर है।

                                                                                                                                                चतुर सिंह नेगी
                                                                                                                                                सलाहकार मंडल , गरीब क्रांति अभियान उत्तराखंड