2 पुस्तिका विमोचन, श्रीनगर गढ़वाल. 2012

पहाड़ों पर चकबन्दी कैसे-क्यों

लेखक कँुवर सिंह भण्डारी
(से.नि.) बदोबस्त अधिकारी चकबन्दी


भूमिका


चकबन्दी के बारे में अगर हम बात करें, तो एक बच्चे से लेकर बुजुर्ग व्यक्ति तक बता देगा कि, चकबन्दी बिखरे हुए खेतों को संहत (इकट्ठा) करना ही चकबन्दी है। यदि हम पूछें कि यह कैसे की जाती है, तो सम्भवतया एक प्रतिशत व्यक्ति भी यह नहीं बता पायेंगे। हकीकत यह है कि जब किसी ग्राम की चकबन्दी हो जाती है, तब ही वहां के कृषक समझ पाते हैं कि उनके यहां चकबन्दी कैसे की गयी। यह बात चकबन्दी किये ग्रामों में भ्रमण करते समय वहां के कृषकों ने मुझे बताई। तब से मेरे मन में यह घारणा बनी कि, कृषकों को इस योजना का समुचित लाभ मिले, इसके लिए यह आवश्यक है कि, उन्हें इस बात की आधार भूत जानकारी होनी चाहिए कि, जो कार्य उनके हित में किया जा रहा है, वह किया कैसा जाता है।

      सौभाग्यवश हाल ही मैं मेरी मुलाकात श्री गणेश सिंह नेगी गरीब से हुई। पहोड़ों पर चकबन्दी में रूचि रखने वाला हर व्यक्ति इस चकबन्दी के लिए समर्पित व्यक्ति के नाम से परिचित हैं। उनके अनुरोध व प्रेरणा से मैंने यह सोचा कि मुझे इस संबंध में कृषक जनता को जानकारी देने का प्रयत्न करना चाहिए। इसी सन्दर्भ में यह संक्षिप्त पुस्तिका के अवलोकन से आप लोग किसी हद तक यह समझनें में समर्थ होंगे कि चकबन्दी क्या है, कैसे की जाती है, और क्यों की जाती है। यह इस पुस्तिका का उदे्दश्य है।

      पहाड़ों पर जब चकबन्दी करने की बात कही जाती है, तो यह बात अच्छे खासों के गले नहीं उतरती है। मेरा तो यहां तक अनुभव है कि, ताउम्र चकबन्दी विभाग में (उ. प्र में) कार्य करने वाले अधिकांश अधिकारी व कर्मचारी यह कहते सुने गये हैं कि, पहाड़ों पर चकबन्दी कैसे होगी ? हकीकत यह है कि हम चकबन्दी करने में पहाड़ व मैदान का प्रश्न बीच में लाते है। जबकि जहां तक प्रश्न चकबन्दी का है, इसका सीधा साधा मतलब बिखरे खेतों को इकट्ठा करना है। फिर वह खेत मैदानी इलाके में हों या पहाड़ी इलाके में, इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है। हाॅ यह बात अवश्य है कि मैदानी क्षेत्र में चक चैकोर या आयताकार बनते हैं, बशर्ते कि कोई ऐसा अवरोध जो सीधा न किया जा सके आड़े न आये। क्योंकि मैदान सममतल हैं, लेकिन पहाड़ के खेतों की रचना, उनकी भौगोलिक स्थिति, बिखरे खेतों को इकट्ठा करने में कहीं भी बाधक नहीं है। ऐसी मेरी मान्यता है।
      उ. प्र. में चकबन्दी का प्रारम्भ 1953-54 में हुआ, प्रारम्भिक दौर में जो चक बनाए जाते थे उनमें कई कोने होते थे। लगभग 1960 में उ. प्र. में वक आयताकार या वर्गाकार बनने शुरू हुए।

      चकबन्दी कितनी आवश्यक है, इस बात से भी स्पष्ट होता है कि, सन 1960 में माननीय स्व0 सम्पूर्णानन्द जी जो उस समय उ. प्र. के मुख्यमन्त्री थे, ने उ. प्र. में चकबन्दी क्रियाओं को बन्द करने की घोषणा कर दी थी। जैसे ही यह बात पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई, उसके दूसरे ही दिन माननीय स्व0 पंडित जवाहर लाल नेहरू तत्कालीन प्रधानमन्त्रीजी ने घोषणा की कि, चकबन्दी बन्द नहीं की जा सकती है। आज उ. प्र. में चकबन्दी का तीसरा चक्र चल रहा है। वहाॅ शासन से यह तय हो चुका है कि, राज्य में कोई बन्दोबस्म नहीं होगा, बल्कि हर 20 वर्ष बाद पुनः चकबन्दी करके नक्शा व राजस्व अभिलेखों को अध्यतम बनाया जायेगा।

      हमारे पड़ोसी राज्य हिमाचल में सन 1954-55 से चकबन्दी चल रही है और सम्भवतया अब तक पर्ण राज्य की हो चुकी होगी। हिमाचल प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री स्व0 परमार जी चकबन्दी की अहमियत को समझते थे, जिसका नतीजा आज हिमाचल प्रदेश का कृषक देश के खुशहाल किसानों में से एक है। कहने का तात्पर्य यह है कि जब हिमाचल प्रदेश में चकबन्दी सफलता पूर्वक हो रही है और उसका लाभ वहाॅ का किसान उठा रहा है, तो फिर हमारे उत्तरांचल में क्यों चकबन्दी नहीं हो सकती है? उत्तरांचल का किसान क्यों उस लाभ से वंचित किया जा रहा है। स्पष्ट है कि, शासन स्तर पर संकल्प की कमी है।

      यहाॅ पर मैं यह उल्लेख भी करना चाहॅूगा कि, सम्भवतया सन 1973 में देहरादून जनपद के 6-7 पहाड़ी गाॅव, जो मसूरी के भट्टा गांव के आस-पास हैं, ने तत्कालीन चकबन्दी आयुक्त उ. प्र. श्री भटनागर साहब ने चकबन्दी क्रियायें पहाड़ों पर प्रयोग के तौर पर प्रारम्भ करवायी थी। कतिपय राजनैतिक कारणों से न ही उक्त ग्रामों की चकबन्दी रोक दी गयी, बल्कि देहरादून जनपद के मैदानी क्षेत्र में भी चकबन्दी क्रियायें बन्द कर दी गयीं। परिणामस्वरूप उक्त पहाड़ी ग्रामों में से एक “सलान गांव” की ही चकबन्दी पूर्ण हो पायी। जबकि अन्य गांव के लोग इस बात से काफी नाराज थे कि क्यों उनके गांव की चकबन्दी बन्द कर दी गयी।

      यहां पर में यह उल्लेख करना युक्तिसंगत समझता हुं कि सन 1982-83 में चकबन्दी आयुक्त उ. प्र. ने एक संयुक्त चालक चकबन्दी व एक उपसंचालक को सलान गांव की चकबन्दी के संबंध में यह जानने के लिए भेजा कि इस पहाड़ी ग्राम की चकबन्दी कैसे हुई है। मुझे भी उनके साथ जाने का अवसर मिला। मोटर मार्ग से 3-4 किमी0 पैदल चलने के उपरान्त हम उस गांव में पहुंचे। वहां लोग एकत्रित थे। सभी ने खुले दिल से चकबन्दी की से सराहना की। हम लोग उस गांव में चकबन्दी पूर्ण होने के 9-10 साल बाद पहुंचे थे। आस पास के गांव के बहुत से कृषक भी चकबन्दी के अधिकारियों के आने की बात सुनकर एकत्रित हो गये थे। सलान गांव को चकबन्दी क्रियाओुं से मिली सहुलियतों से वह लोग भी काफी प्रभावित थे। उनका कहना था कि क्यों उनकें गांव में चकबन्दी का कुछ कार्य करने के उपरान्त बन्द कर दिया गया। चकबन्दी का लाभ अकेले सलान गांव को ही क्यों दिया गया। उनका अनुरोध था कि शीघ्र उनके गांवों में भी चकबन्दी लागू की जावे। उन्हें मात्र आश्वासन देने के उपरान्त हम लोग वहां से विदा हुए।

      ऐसी बात नहीं है कि पहाड़ों पर चकबन्दी क्रियायें प्रारम्भ करने के बारे में प्रयत्न न किये गये हैं। सन 1973-74 के लगभग चकबन्दी आयुक्त उ0प्र0 ने, तत्कालीन राज्य मंत्री स्व0 नरेन्द्र सिंह भण्डारीजी के प्रयत्न से दो सर्वेक्षण दल गढ़वाल व कुमाऊं में चकबन्दी की संभावनाओं के लिए भेजे। लेकिन दुर्भाग्यवश उन दलों में काई भी अधिकारी व कर्मचारी पहाड़ी नहीं था, नतीजा दोनों दल पहाड़ों के तीर्थ स्थानों एवं दर्शनीय स्थलों का भ्रमण कर लौट आये और अपनी आख्या चकबन्दी के विरूद्ध प्रस्तुत कर दी। कहना अनउपयुक्त न होगा कि इसी संबंध में राजस्व विभाग से भी आख्या मांगी गयी थी। संबन्धित तहसीलदारों ने चकबन्दी के विरूद्ध ही आख्या दी। यह बात मेरी जानकारी में तब आयी, जब मेरे जानकार एक एस. डी. एम महोदय से इस संबन्ध में मैनें पूछा। तब वह तहसीलदार थे। मैंने दोस्ताना तौर पर उनसे कहा कि भाई साहब आप पहाड़ों पर चकबन्दी के बारे में क्या राय रखते हो। उनका उत्तर भी वही नकारात्मक था जो हर सामान्य व्यक्ति का इस संबंध में होता है। मैंने जब उन्हें संक्षेप में किस प्रकार चकबन्दी की जाती हैं उन्हें बताया तो वह बहुत शर्मसार हुए और कहने लगे कि बड़ी भूल उस समय हो गयी। आज भी जब तक शासन, प्रशासन दृढ़ संकल्प नहीं लेता, पहाड़ पर चकबन्दी नहीं हों सकती। हमारे आपके या कृषकों के चाहने से कुछ नहीं होता।

      जहां तक शासन और प्रशासन के दृढ़ संकल्प का प्रश्न है। यहां पर मैं यह उल्लेख करना उचित समझूंगा कि जब उ. प्र. में सन 1953-1954 में चकबन्दी क्रियायें प्रदेश की लगभग 14 तहसीलों में प्रारम्भ की गयी, तो इसका घोर विराध कृषकों द्वारा किया गया। लेकिन तत्कालीन राजस्व मंत्री आदर्णीय स्व0 चैधरी चरण सिंह जो कि स्वयं एक कृषक थे और चकबन्दी के महत्व को समझते थे, ने स्पष्ट निर्देश संबंधित जिलाधिकारियों को दिये थे कि, किसी भी स्थिति में चकबन्दी होनी है, चाहे इसके लिए सख्ती क्यों न अपनानी पडे़ परिणाम यह हुआ कि जिन गांवों में भी चकबन्दी का विरोध लोगों ने किया, यदि वह समझाने के उपरान्त भी नहीं माने, तो सम्बन्धित बन्दोबस्त अधिकारी (चकबन्दी) जो कि एस डी एम भी हुआ करते थे, ने विरोधियों को बन्द करवाना आरम्भ कर दिया था। आज भी यदि उस समय के लोग उन तहसीलों में मिलते हैं, तो इस बात के वह स्वयं गवाह है। उन्हीं प्रारम्भिक 14 तहसीलों में चकबन्दी का अब तीसरा चक्र चल रहा है या पूर्ण हो गया है।

      जबरदस्ती चकबन्दी लागू करने की स्थिति वर्तमान में पहाड़ी क्षेत्रों में नहीं है। मुझे श्री गणेश सिंह नेगी “गरीब जी” ने वार्तालाप के दौरान बताया कि पट्टी पटवालस्यों न्याय पंचायत दिवई विकास क्षेत्र कलजीखाल जनपद पौड़ी के 8 ग्रामों के लोग चकबन्दी कराने के लिए स्वेच्छा से तैयार हैं और इस संबन्ध में प्रत्येक ग्राम सभा का प्रस्ताव शासन को भेजा जा चुका है। यह बात कमिश्नर एवं जिलाधिकारी महोदयो के संज्ञान में भी है। श्री गरीब का भी कहना है कि शासन प्रशासन की सहमति पर बात अटकी हुई है।

      बात सुन 1982 की है कि मैं देहरादून तहसील में चकबन्दी क्रियाओं को लागू करने के संबंध में गांवों के चयन के लिए सर्वेक्षण कर रहा था। ग्राम हर्रावाला में कृषकों की एक मीटिंग बुलाई गयी थी। वहां पर कृषकों का कहना था कि सन 1973-74 में यहां चकबन्दी बिना हमसे पूछे आरम्भ कर दी गयी थी और अचानक बन्द भी काफी कार्य होने के उपरान्त कर दी गयी। अब फिर आरम्भ करने की बात सरकार कर रही है तो करिये। स्पष्ट है कि शासन के अपने निर्णय से चकबन्दी आरम्भ भी की गयी और बन्द भी की गयी ।हम बत भी सहमत थे और अब भी सहमत हैं। इसी मीटिंग के दौरान मेरा परिचय एक रिटायर्ड मेजर नेगी जी से हुआ, जिनका हर्रावाला में कुछ खेती और मकान भी था। उनका कहना था कि आप लोग इस मैदानी क्षेत्र में चकबन्दी होनी चाहिए जहां मैदानी क्षेत्र की अपेक्षा इसकी अधिक आवश्यकता है। जब उनसे इस सम्बन्ध में आगे बातचीत हुई तब उहोनें बताया कि वह हिमाचल प्रदेष के रहने वाले हैं और हिमाचल प्रदेष में उनके पहाड़ी गांव में चकबन्दी हो चुकी है। उन्होनें मुझे अपने गांव आने का भी न्योता दिया, दुर्भाग्यवष मैं जा नहीं सका। यह बात जब मैंने अपने उच्च अधिकारियों को बताई तो उन्होनें इसकी पुष्टि हिमाचल सरकार से पत्र व्यवहार करने के उपरान्त की। चकबन्दी आयुक्त उ. प्र. ने एक टीम चकबन्दी की जानकारी करने के लिए हिमाचल प्रदेष भेजी। उसका परिणाम क्या निकला स्पष्ट है कि कहीं न कहीं दृढ़ संकल्प की कमी के कारण यहां पहाड़ पर चकबन्दी आजतक लागू नहीं की जा सकी। जिसका खामियाजा पहाड़ का कृषक आज तक उठा रहा है।
चकबन्दी बिखरे खेतों को इकट्ठा करना मात्र नहीं है यद्यपि इसका यह मुख्य उद्ेदष्य है, तथापि इसके अतिरिक्त भी इस प्रक्रिया में:-

1-      भूमि का बन्दोबस्त किया जाता है।
2-      भू-अभिलेखों का पुर्नरीक्षण एवं शुद्धिकरण किया जाता है।
3-      ग््राामों का नियोजन किया जाता है।
उक्त के अतिरिक्त भी अन्य गौंण लाभ इस प्रक्रिया से हाते हैं। उक्त सभी का संक्षेप में वर्णन किया जा रहा है।



चकबन्दी कैसे की जाती है ?


        अब मैं आपको संक्षेप में यह बताने का प्रयत्न करूंगा कि खेतों की चकबन्दी कैसे की जाती है। शासन द्वारा किसी भी क्षेत्र को चकबन्दी क्रियाओं के अन्तर्गत लिए जाने के उपरान्त स्वाभाविक है कि वहां इस कार्य को सम्पन्न करने हेतु अधिकारियें व कर्मचारियों की नियुक्ति की जाती है। इस योजना के अन्तर्गत जो अधिकारी व कर्मचारी नियुक्ति किये जाते हैं उनका क्रम निम्न प्रकार होता है (उ. प्र. में)
1-      निदेषक आयुक्त चकबन्दी।
2-      संयुक्त संचालक चकबन्दी।
3-      उप संचालक चकबन्दी।
4-      बन्दोबस्त अधिकारी चकबन्दी।
5-      चकबन्दी अधिकारी।
6-      सहायक चकबन्दी अधिकारी।
7-      चकबन्दीकर्ता।
8-      चकबन्दी लेखपाल।
9-      ड्राफट मैन।
10-      ट्रेसर।
11-      चपरासी तथा चेनमैन।
12-      इनके अतिरिक्त अधिकारियों के कार्यालयों के लिए लिपिक वर्ग।

इस योजना में एक इकाई सहायक चकबन्दी अधिकारी का क्षेत्र होता है। इस क्षेत्र में लगभग पांच छ हजार एकड़ कृषि योग्य भूमि ली जाती है सहायक चकबन्दी अधिकारी के अधीन दो चकबन्दी कर्ता, 6 लेखपाल, 1 पेषकार, 1 चपरासी, 1 डाक रनर होता है। चकबन्दीकर्ता के पास उक्त 6 लेखपालों में से 3-3 लेखपाल एवं 1-1 चेनमैन होता है। चकबन्दी अधिकारी के अधीन 3-5 सहायक चकबन्दी अधिकारी क्षेत्र होतें हैं तथा एक पेषकार, एक अलहमर एवं एक ड्राफट मैन एवं दो टेªसर एवं दो चपरासी होते हैंै।     बन्दोबस्त अधिकारी चकबन्दी के अधीन 3-5 तक चकबन्दी अधिकारी क्षेत्र होतें हैं एवं कार्यालय का लिपिक वर्ग आदि होता है।
    उपसंचालक चकबन्दी का कार्य, कार्य कम होने की दषा में सम्बिन्धित जिला अधिकारी करते हैं जो वैसे भी जिला उपसंचालक चकबन्दी होते ही हैं। अन्यथा पृथक से भी उपसंचालक चकबन्दी की नियुक्ति शासन द्वारा की जाती है।
    सहायक चकबन्दी अधिकारी का कार्यालय उसके क्षेत्र में ही होना जनहित में अनिवार्य होता है।
    चकबन्दी क्रियाओं के सफल कार्यान्वयन के लिए यह आवष्यक है कि इस योजना में लगाये गये अधिकारी कर्मचारी इस योजना के प्रति समर्पित हों। उनका चुनाव ही इस योजना के सफल कार्यान्वयन के लिए उत्तरदायी होगा।



चकबन्दी क्रियाओं का प्रारम्भ-

चकबन्दी क्रियाओं के अन्तर्गत ग्राम को लिए जाने की सूचना-


      यहां पर मोटे तौर पर यह जानकारी दी जा रही है कि उ0प्र0 में कैसे की जाती है। यही प्रक्रिया पहाड़ों पर भी सुगमता से अपनायी जा सकती है। किसी क्षेत्र का चकबन्दी क्रियाओं के अन्तर्गत लिये जाने का सरकारी गजट में प्रकाशन होने के उपरान्त, सहायक चकबन्दी अधिकारी विधिवत चकबन्दी कर्ता द्वारा हर गांव में इसका प्रकाशन ग्राम सभा की मीटिंग बुलाकर करता है। इसमें ग्रामवासियों को यह बताया जाता है कि आज से ग्राम में चकबन्दी क्रियायें आरम्भ हो गयी हैं। अब जब तक ग्राम चकबन्दी क्रियाओं के अन्तर्गत है, कोई भी खातेदार या अन्य व्यक्ति कृषि योग्य खाते की भूमि का क्रय-विक्रय बिना बन्दोबस्त अधिकारी चकबन्दी की अनुमति के नहीं कर सकता है। कृषि कार्य के अतिरिक्त खाते की भूमि का उपयोग अन्य किसी प्रयोजन के लिए नहीं किय जा सकता है। समस्त वाद (मुकद्में) जहां भी जिस भी न्यायालय भूमि के सम्बन्ध में चल रहें हों सब स्थगित हो जायेंगे अर्थात चकबन्दी न्यायालयों के अतिरिक्त अन्य किसी न्यायालय में नहीं चल सकते हैं आदि।

चकबन्दी कमेटी का गठन :- विधिवत ऐजेन्डा देकर ग्रामवासियों को सूचित किया जाता है कि भूमि प्रबन्धक समिति में से चकबन्दी कमेटी के अध्यक्ष एवं सदस्यों का चुनाव किया जायेगा। निर्धारित तिथि पर चकबन्दी कर्ता इस कमेटी का गठन करता है। इसमें पिछड़ी एवं जनजाती का मेम्बर होना आवश्यक है। अन्यथा बन्दोबस्त अधिकारी चकबन्दी द्वारा वह मनोनीत भी किया जा सकता है। यह चकबन्दी समिति चकबन्दी के हर स्तर के काम में चकबन्दी कर्मचारियों को अपना सुझाव व सहायता करती है। जिसके सुझावों का समुचित ध्यान रखा जाता है और अधिकांश अहम कार्य उसके परामर्श से सम्पन्न किये जाते है।

षजरा (नक्षा) दुरूस्ती :- चकबन्दी लेखपाल सरसरी तौर पर गांव के खेतों का मौके पर नक्शे से मिलान करता है। मामूली नक्शा दुरूस्ती लेखपाल मौकानुसार स्वयं कर देता है। उसके इस कार्य की जांच चकबन्दीकर्ता एवं सहायक चकबन्दी अधिकारी अपने स्तर से भी करते हैं। यदि नक्शे व मौके पर खेतों के क्षेत्रफल, आकृति आदि में अधिक असमानता मिलती है तो उस ग्राम का चकबन्दी स्टाफ द्वारा रिसर्वे किया जाता है इसमें केवल नक्शों को मौके के हिसाब से बनाया जाता है तथा खेतों का तदनुसार क्षेत्रफल अंकित किया जाता है।

चकबन्दी पड़ताल :- नक्शा दुरूस्ती के उपरान्त लेखपाल तहसील से प्राप्त खसरे के आधार पर खसरा बनाता है जिसमें अन्य बातों का समय समय पर इन्द्रराज किया जाता है। यह आगे क्रमानुसार बताया जायेगा। इस चकबन्दी खसरें में संबंधित ग्राम के समस्त खेतों को क्रमवार अंकित किया जाता है। प्रत्येक खेत का खसरे में दर्ज क्षेत्रफल के साथ-साथ नक्शा दुरूस्ती के समय पाये गये क्षेत्रफल को भी अंकित किया जाता है। लेखापाल इस खसरे में प्रत्येक खेत की किस्म जमीन जो पूर्व बन्दोबस्त में दर्ज है को भी अंकित करता है। खेत सिंचित है असिंचित है, एकफसला है, द्विफसला है तहसील से प्राप्त खसरे के आधार पर दर्ज करता है।

      जब यह अभिलेख लेखपाल द्वारा तैयार कर लिया जाता है तब विधिवब ग्राम में ऐजेन्डा जारी किया जाता है कि अमूक दिनांक को चकबन्दीकर्ता गांवों में खेत खेत पड़ताल करने को आयेगा। अतः चकबन्दी समिति एवं अन्य कृषक उस दिन उपस्थिति रहकर कार्य के निष्पादन में अपना सहयोग दें। निर्धारित तिथि पर चकबन्दीकर्ता एवं लेखपाल ग्राम में निर्धारित स्थान पर पहुंचकर चकबन्दी कमेटी की उपस्थिति में पड़ताल में क्या कार्य होगा समझाता है तथा तदानुसार कार्यवाही पुस्तक में सब बातों क इन्द्रराज कर, चकबन्दी समिति व उपस्थिति कृषकों के साथ मौके पर जाता है तथा खेत नं. 1 से मौके पर पड़ताल का कार्य करता है। इसमें चकबन्दीकर्ता प्रत्येक खेत पर खातेदार के अतिरिक्त यदि किसी अन्य व्यक्ति का कब्जा बताया जाता है, या कब्जेदार स्वयं बताता है तो उसका कब्जा कितने वर्षो से किस हैसियत से है का इन्द्रराज चकबन्दी कर्ता इस खसरे में करता है।

     उस खेत में पेड़, कुंआ, या अन्य जो भी उन्नति के साधन हों का इन्द्रराज भी किया जाता है। खेत एक फसला है, द्विफसला ह, बंजर है, सिंचाई का क्या साधन है, गावों की आबादी से कितनी दूरी पर है, खेत की प्राकृतिक बनावट कैसी है अर्थात खेत समतल है या उबड़ खाबड़ है, जंगल या किसी बाग के पास है अर्थात खेत की पूरी जन्तपत्री तैयार करता है।

सत्यापन (तस्दीक) खतौनी :- चकबन्दी समिति एवं ग्राम के कृषकों को समुचित सूचना देने के उपरान्त चकबन्दी कर्ता ग्राम में जाता है तहसील से प्राप्त खतौनी का खातेवार प्रत्येक खातेदार को पढ़कर सुनाता है इसमें दर्ज खातेदारों का नाम, पिता का नाम, निवास स्थान, सही अंकित हैं या नहीं पूूछता है। खाते में खातेदारों के क्या अंश हैं, किसी सहखातेदार भाई, चाचा, ताऊ, भतीजा, पोता, आदि अथवा बैनामा आदि से संयुक्त रूप से ली गयी भूमि में किसी का नाम अंकित होने से रह तो नहीं गया है, किसी खातेदार का नाम खाते में गलत तरीके से तो दर्ज नहीं है की जानकारी करता है। अगर इस प्रकार की कोई गलती या कमी खाते में पाई जाती है तो चकबन्दी कर्ता खातेवार उपका इन्द्रराज एक रजिस्टर में करता है। सामान्य सी बात है कि चकबन्दी समिति व अन्य कृषकों की उपस्थिति में सही गलतियों या कमियों का पता चल जाता है। इस रजिस्टर में सत्यापन खतौनी के समय पाई गयी गलतियों के साथ पड़ताल के समय पाये गये कब्जेदारों को भी इन्द्रराज किया जाता है।
चकबन्दी कर्ता उक्त सत्यापन खतौनी के समय खाते में दर्ज नाबालिग, जड़, पागल, की एक सूूची भी बनाता है जिसमें यदि पहले से उनके अभिभावक दर्ज नहीं है ता अभिभावक का नाम उसका नाबालिग, जड़, पागल से रिश्ता दर्ज करता है। इस पर सहायक चकबन्दी अधिकारी विधिवत आदेश पारित करता है जिससे चकबन्दी क्रियाओं के दौरान उनके हितों की रक्षा हो सके।

विनिमय अनुपात (कीमत) को लगाने हेतु खेतों का चुनाव :- विधिवत चकबन्दी समिति व ग्रामवासियों का सूचना देने के उपरान्त सहायक चकबन्दी अधिकारी गांव में जाता है और उपस्थिति लोगें को विनिमय अनुपात के बारे में कि वह किस प्रकार से लगाया जाता है, बताता है। यह एक अहम् कार्य है। इसमें गांवों के समस्त खेतों में से दो चार खेत ऐसे चुने जाते हैं जो आपस में हर दशा में एक समान हों अर्थात उपज, किस्म जमीन सिंचाई के साधन एवं गांवों से निकटता में एक ही श्रेणी के हों ऐसे खेत दोषरहित गांव के समस्त खेतों में सबसे उत्तम चुने जाते हैं। ऐसे दो चार जो भी खेत चुने जाते हैं उनका मौका मुआयना करने के उपरान्त वह मानक गाटे (खेत) घोषित कर दिये जाते हैं। इस प्रकार शेष खेतों का विनिमय अनुपात सहायक चकबन्दी अधिकारी द्वारा चकबन्दी समिति एवं उपस्थिति जानकार किसानों की मदद से निर्धारित किया जाता है। इन मानक गाटों (खेतों) का मूल्यांकन 100 पैसे प्रति बीघा एकड़ हेक्टेयर के हिसाब से होता है और तदनुसार इनके अनुपात से अन्य खेतों का मूल्यांकन निर्धारित किया जाता है। यह एक बाट का काम करतें है।

सहायक अधिकारी द्वारा खेतों के विनिमय अनुपात का लगाया जाना सहायक चकबन्दी अधिकारी ग्राम में जाता है और मीटिंग बुलाकर उपस्थिति व्यक्तियों को कैसे खेतों का विनिमय अनुपात (खेतों की कीमत) लगाया जायेगा बताता है। इसमें ग्राम के खेत जो लगभग एक समान हों समानता के आधार पर कई खण्ड़ों में बांटा जाता है। उन बड़े खण्ड़ों का आपस में किस कीमत यानि विनिमय अनुपात से अदल-बदल होगा मोटे तौर पर सजरे में अंकित किया जाता है। अर्थात एक खण्ड जो सबसे उत्तम है मानक गाटों के तुलना में उसकी क्या कीमत है। इसी प्रकार सभी खण्ड़ों का मूल्यांकन मानक गाटों से तुलना कर उनका विनिमय अनुपात निर्धारित किया जाता है।

      इसके उपरान्त स. च. अ प्रत्येक खेत में जाकर हर खेत की तुलना उपरोक्त 100 पैसों के छाटें गये गाटों (खेतों) से करता है और तदनुसार उपस्थिति चकबन्दी समिति तथा अन्य कृषकों एवं अपने विवेक से हर खेत का विनिमय अनुपात निर्धारित करता है। यह विनिमय अनुपात 5.10.15.20 पैसे से लेकर 95 पैसे तक हो सकता है इस विनिमय अनुपात को अंकों में स.च. अ नक्शे पर भी अंकित करता है। इसी दौरान स.च.अ नक्शे पर भी अंकित करता है। इसी दौरान स.च. अ खेत में विद्यमान पेड़, कुंआ तथा अन्य उन्नति के साधनों का प्रतिकर भी चकबन्दी समिति तथा कृषकों के एवं अपने विवेक के आधार पर तय करता है उसकी जांच भी मौके पर करता है। गांव में मीटिंग के दौरान स.च.अ. कुछ प्रतिशत चकबन्दी कर्ता द्वारा की गयी सत्यापन खतौनी के समय बताये गयी अशुद्धियों एवं तनाजों की जांच भी करता है तथा चेबन्दीकर्ता द्वारा तैयार की गयी नावालिग, जड़, पागल, आदि के अभिभावकों की नियुक्ति भी करता है ताकि चकबन्दी क्रियाओं के दौरान उनके हितों की रक्षा की जा सके|

सार्वजनिक प्रयोजन हेतु भूमि का सुरक्षित किया जाना :- उक्त बात का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप् से चकबन्दी क्रियाओं से कोई संबंध नहीं है, लेकिन गांव के विकास से लिए यह अति आवश्यक है। इसके लिए स.च.अ. विधिवत सूचना के उपरान्त गांव में चकबन्दी समिति व अन्य कृषकों व अकृषकों अर्थात समस्त ग्रामवासियों की एक मीटिंग आहूत करता है। उपस्थिति व्यक्तियों को बताया जाता है कि यह कार्यवाही उनके गांव के नियोजन के लिए की जा रही है। मुख्य रूप से इसमें गांव की आबादी के विस्तार, भूमिहीन तथा हरिजनों के लिए आवास, खाद के गढ्ढों, अन्र्त ग्रामीण मार्गो के लिए, चक मार्ग, स्कूल, पंचायत घर, अस्पताल क्रीड़ास्थल वृक्षारोपण, सार्वजनिक पौधशाला, नहर, गूल, मरघट, कब्रिस्तान, सार्वजनिक सिंचाई के लिए टैंक आदि- आदि ग्राम की आवश्यकतानुसार, खाते की या ग्राम समाज की भूमि सुरक्षित की जाती है। यह एक ऐसा कार्य है जिससे भूमि की उपलब्धता ग्राम के चैमुखी विकास के लिए उपलब्ध रहती है। अन्यथा जगजाहिर है कि भूमि उपलब्ध न होने के कारण मार्ग (चाहे वह मोटर मार्ग ही क्यों न हो) अवरूद्ध पड़े हैं। किसी भी सार्वजनिक कार्य के लिए सरकार पैसा तो दे रही है पर भूमि उपलब्ध नहीं होती है जिसके कारण ग्राम का विकास रूक जाता है।

      इस कार्यवाही के दौरान ग्राम की हर आवश्यकता को देखते हुए भूमि सुरक्षित की जाती है और इसके एवज में प्रत्येक खातेदार से उसकी समस्त भूमि के मूल्यांकन से 3 से 5 प्रतिशत मूल्यांकन की भूमि ली जाती है। इस प्रकार स.च.अ चकबन्दी समिति के परामर्श से उचित स्थानों पर उक्त प्रयोजनों हेतु भूमि सुरक्षित करता है।

खतौनी की नकल का वितरण :- इसके उपरान्त प्रत्येक खातेदार व कब्जेदार को अब तक की गयी समस्त कार्यो के संबंध में तहसील से प्राप्त खतौनी की नकल, जिसमें खातेदार का खाता नं0, खेतों का खतौनी में दर्ज समस्त खेतों का रकबा, रिसर्वे या चकबन्दी पड़ताल में पाया गया खेतों का क्षेत्रफल, कब्जे दार का नाम मय पूरे पते के, खेतों का विनिमय अनुपात (खेत की दर) अंकित किया जाता है। इस हिसाब से खेत की कुल कीमत यालि यदि एक खेत आधा एकड़ का है और उसका विनिमय अनुपात 40 पैसे की दर से लगा है तो उस खेत की कुल कीमत 20 पैसे होगी। इस प्रकार विनिमय अनुपात के हिसाब से खाते के समस्त खेतों की कीमत निकाली जाती है। खाते में प्रत्येक खातेदार का कितना अंश है, किसी खेत में पेड़, कुंआ, या अन्य उन्नति का साधन है, तो उसका प्रतिकर तथा उसमें किस खातेदार का कितना अंश है भी अंकित किया जाता है। यदि उस खाते का कोई क्षेत्रफल सार्वजनिक प्रयोजनों के लिए सुरक्षित किया गया है तो उसका भी उल्लेख किया जाता है।

      इसी प्रकार कब्जेदार को भी अलग से एक नकल जारी की जाती है जिसमें खेत या खेतों पर उसका कब्जा पड़ताल के समय बताया गया होता है उक्त सभी विवरणों के साथ वितरित किया जाता है। इन उदृहणों के साथ एक नोटिस भी उस आशय का वितरित किया जाता है कि, यदि उक्त किसी भी इन्द्रराज के संबंध में किसी व्यक्ति को कोई आपत्ति है, तो वह अपनी आपत्ति लिखित रूप से साधारण कागज पर बिना कोर्ट फीस का टिकट लगाए निर्धारित अवधि के अन्दर स.च.अ के कार्यालय पर कर सकता है।

अशुद्धियों एवं आपतियों का निस्तारण :- आपत्ति करने के लिए निर्धारित समय बीत जाने के उपरान्त समस्त विवादित या अशुद्धि वाले खातों कार्यालय प्रतिलिपि संबंधित लेखपाल स.च.अ के पेशकार को उपलब्ध कराता है। पेशकार प्रत्येक विवादित खाते की प्रतिलिपि एवं कब्जेदार को दी गयी प्रतिलिपि के साथ उस खाते से संबंधित प्राप्त सभी आपत्तियों को संलग्न कर अलग अलग पत्रावलियां बनाकर उन्हें विधिवत मिसिल बन्द रजिस्टर में दर्ज करता है।

      इसके उपरान्त विधिवत सूचना देकर स.च.अ गांव में जाता है और प्रत्येक पत्रावली का समझोते के आधार पर निस्तारण करने का प्रत्यन करता है। यदि पक्ष समझौते के लिए सहमत हैं तो स.च.अ अपने हाथ से समझौता लिखता है जिसे वह पक्षों एवं उपस्थिति चकबन्दी समिति एवं कृषकों के सम्मुख पढ़कर सुनाता है एवं इस समझौते पर पक्षों के हस्ताक्षर या निशानी अंगूठा एवं सक्षी के तैर पर दो चकबन्दी समिति के सदस्यों के हस्ताक्षर भी इस पर लेता है। इस समझौते के आधार पर स.च.अ पत्रावली पर आदेश पारित कर देता है।

      जो वाद स.च.अ समझौते के आधार पर तय नहीं कर पाता है। इसके उपरान्त वह चकबन्दी खतौनी तैयार करता है। इस खतौनी में एक मुख्य बात यह होती है कि संयुक्त खातों में प्रत्येक खातेदार के क्या क्या अंश हैं, आदेश के अनुसार दर्ज होते हैं अन्य बातें खतौनी के अनुसार ही दर्ज होती है। इस प्रकार चकबन्दी क्रियाओं के दौरान अभिलेख व नक्शे की दुरूस्ती का कार्य पूर्ण हो जाता है।

सहायक चकबन्दी अधिकारी ़द्वारा गाँवों में चको का निर्माण करना :- विधिवत सूचना के उपरान्त सहायक चकबन्दी अधिकारी ग्राम के निर्धारित स्थान पर जाता है और वहाँ पर उपस्थित चकबन्दी समिति एंव अन्य कृषकों की उपस्थिति में चक निर्माण का कार्य नक्शे पर,अभिलेखों एंव उपस्थिति चकबन्दी समिति एंव कृषको के सहयोग से करता है। सर्वप्रथम अगर किसी मुख्य मार्ग की आवश्यकता ग्राम में है तो वह उपस्थित लोगों के परामर्श से ग्राम की सुविधानुसार उसे नक्शे पर निकाला जाता है। इसके उपरान्त उनका मुख्य मार्गाे को भी शजरे पर बनाया जाता है। इसके उपरान्त उनका मौके पर जाकर नजरी साीमंाकन किया जाता है। ताकि यह पता चल सके कि जो मुख्य मार्ग निकाला गया है, वह मौके पर भी सही स्थिति में उपयोगी होगा या कोई अवरोध तो उस मार्ग में नही पड़ता है। यदि पड़ता है तो तदनुसार मौकानुसार उसमें संशोधन कर दिया जाता है।

      अब जहाँ तक चक निर्माण का संबंध है मैदानी व पहाड़ी क्षेत्रों में इसमें थोड़ा अन्तर है। विखरे खेत संहत (इकट्ठा) करना ही चक बनाने का उद्देष्य है। फिर चाहे क्षेत्र मैदानी हो या पहाड़ी। मैदान में जहाँ चैकोर या आयताकार चक बनाये जाते हैं। वहीं चैकोर य आयताकार चक पहाड़ो पर नही बनाये जा सकते हैं। लेकिन चक तो बनाये जा सकते हैं। इसमें कोई कठिनाई नही है और पहाड़ो पर चाहिए भी नही। यह धारणा जो सामान्यतः हर व्यक्ति के दिमाग में आती है यह है कि किसी व्यक्ति के पास सिचिंत भूमि भी है और,अच्छे किस्म की असिंचिंत भूमि भी है और खराब किस्म की भूमि भी है तो उसे चक कहाँ दिया जायेगा। एक बात यहाँ पर स्पष्ट करना भी उपयुक्त होगा कि 75 प्रतिशत कृषकों को एक चक 20 प्रतिशत कृृषकों को दो चक और 5 प्रतिशत कृषको को तीन चक दिये जाते सकते हैं। चार चक देने का भी प्रावधान है। परन्तु उसके लिए उपसंचालक चकबन्दी की अनुमति होनी चाहिए यह सब सब इसलिए है कि एक चक देने से उस कृषक के या अन्य कृषको के हितों पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े। जहाँ तक संभव होता है प्रयत्न किया जाता है कि शत प्रतिशत एक-एक ही चक प्रत्येक खातेदार को दिया जाए। फिर भी अगर कृषक की विखरी भूमि का एक चक,अच्छी सिंचित भूमि का दूसरा चक ओर खराब विखरी भूमि का तीसरा चक बनाया जाता है तो भी उसे लाभ ही है। सिंचित भूमि में सिंचाई के लिए नाली एंव सभी चको पर पहुँचने के लिए चक मार्ग दिये जाते हैं जो आवश्कयक हैं। यद्यपि पहाड़ी क्षेत्रों में चक मार्ग की चैड़ाई मैदानी क्षेत्रों की अपेक्षा काफी कम होगी,क्योकि मैदानी क्षेत्रों में बैलगाड़ी,ट्रैक्टर आादि ले जाने के लिए समुचित चैड़ाई के चक मार्गो की आवश्यकता होती है।

      चक यथासंभव कृषक की अधिकतम जोत पर देने का प्रयत्न किया जाता है। आपसी समझौते से कृषक अपनी सुविधानुसार भी चक ले सकते हैं। यदि कतिपय कृषकों की भूमि दो गांव में है तो उसे चक दोनों गाॅवों की सीमा पर मिले हुए मिल सकते हैं। बशर्ते कि किसी अन्य के हितों की हानि न हो। इस प्रकार चक आपसी सूझबूझ और खेतो के स्वेच्छा से आदान प्रदान कर सहायक चकबन्दी अधिकारी बनाता है। विवादित मामलों में वह अपने विवके से कार्य करता है।

      जब समस्त गाॅव के चक बन जाते हैं। तब प्रत्येक खातेदार (चकदार) को उसकी मूल जोत के साथ प्रस्तावित चक के खेतों का रकवा मूल्याकन सहित उदहरण वितरित किये जाते हैं।

      ग्राम प्रधान को भी ग्राम समाज की भूमि की ब्यारे का उदहरण दिया जाता है।
इसके उपरान्त चकबन्दी कर्ता मौके पर चको की पैमाइश करता है। यदि कोई चकदार अपनी किसी चक से असंतुष्ट है तो वह इसकी आपत्ति सहायक चकबन्दी अधिकारी या चकबन्दी अधिकारी के कार्यालय पर कर सकता है। चकबन्दी अधिकारी मौका मुआयना कर उसकी आपत्ति का निस्तारण करता है। यदि वह व्यक्ति या उसके चक के संशोधन से प्रभावित व्यक्ति को कोई आपत्ति है तो तो उसकी अपील वह बंदोबस्त अधिकारी से आदेश से असंतुष्ट व्यक्ति उपसंचालक चकबन्दी के समक्ष रिवीजन प्रस्तुत कर सकता है।

      बंदोबस्त अधिकारी चकबन्दी द्वारा चक अपीलों के निस्तारण के उपरान्त कृषकों को नये चको पर कब्जा दिला दिया जाता है।

      नये भू-अभिलेखों का बनाया जाना- नये चको पर कब्जा दिलाये जाने के उपरान्त नये भू-अभिलेख बनाये जाते हैं। इसमें प्रत्येक चक में पुराने कितने ही खेत क्यों न हों सब का कुल रकबा सहित एक नया नम्बर दिया जाता है। तदनुसार उसका लगान भी अंकित किया जाता है। यदि किसी कृषक को दो तीन चक मिले हो तो तनदुसार उसमे खाते में दो तीन खेत की रकबे सहित अंकित होंगे। इसी प्रकार नक्शा भी नये नम्बर का बनाया जाता है। नये नम्बरों का खसरा,खतौनी व नक्शा तैयार होने के उपरान्त विभिन्न स्तरों पर उनकी जांच की जाती है और इसके उपरान्त नये खसरा खतौनी व नक्शा बनाकर तहसील को भेज दिये जाते हैं। इस प्रकार चकबन्दी क्रियायें उस ग्राम में समाप्त कर दी जाती हैं।

      अतः उपरोक्त से स्पष्ट है कि उत्तराखण्ड के पहाड़ी क्षेत्रों में चकबन्दी उसी नियम व अधिनियम के अन्र्तगत की जा सकती है जो उत्तर प्रदेश में लागू है य़द्धपि इसमें मामूली संशोधन की आवश्यकता पड़ेगी,मुख्य रूप से चको का चैकोर या आयताकार बनाने जाने के सम्बन्ध में जो पहाड़ो पर संभव नही है। लेकिन विखरे खेत तो इकट्ठा किये ही जा सकते है और यह उद्देश्य चकबन्दी का है।


     

चकबन्दी क्यों की जानी चाहिए ?


भूमि सुधार कोई भी कार्य तब तक यर्थात स्प से उपयोगी नही हो सकता जब तक भूमि की चकबन्दी न की जाये अन्यथा उससे अपेक्षित लाभ कृषको को नही मिल सकता है। किसी भी प्रकार से व्यवसाय या उद्योग के लिए आधारभूत ढांचा होना आवश्यक है। इसके बिना वह व्यवसाय या उद्योग सही मायने में न तो स्थापित किया जा सकता है और न ही समुचित प्रगति कर सकता है, यह सक सामान्य बात है। आजादी प्राप्त हाने के पश्चात पहाड़़ पर कृषि व्यवसाय व उससे सबंधित अन्य व्यवसायों के लिए कुछ भी नही किया गया या किया जा रहा है उसका अपेक्षित लाभ पहाड के अधिकांश कृषकों को नही मिल पा रहा है।

      आज हरित क्रन्ति,श्वेत क्रंान्ति,पर्यावरण,पशुपालन,मत्स्य पालन,बागवानी उद्यानीकरण,जड़ी बूटियाँ का उत्पादन आदि-आदि के अन्र्तगत सरकार एंव स्वैच्छिक संस्थााओं की कई योजनाएं चल रही है। परिणाम यह है कि इन योजनाओं का अधिकांश कृषकों के लिए कोई उपयोगिता सि़द्ध नही हो रही है। कारण स्पष्ट है कि खेत बिखरे पड़े हैं।

      पहाड़ पर खेतो का विखराव चरम पर सीमा पर है। एक-एक खेत के दसियों हिस्से घरेलु बंटवारे से हो रखे हैं। जिनमें आधुनिक तरीके से खेती करना दूर की बात है। इनमें परम्परागत खेती करने के भी लाले पड़ रहे हैं। हमारे प्रबृद्ध नेतागण व उच्च पदों पर आसीन अधिकारियों का इस ओर ध्यान न देना अन्यन्त दुर्भाग्यपूर्ण है। पहाड़ के कृषको के लिए कु छ तो किया ही जाना चाहिए जिससे वह भी हिमाचल प्रदेश के कृषको की भांति चकबन्दी का लाभ उठाकर अपनी दयनीय आर्थिक स्थिति से कुछ तो उभर सके। कुछ कर गुजरने की इच्छा शक्ति का अभाव इसमें सबसे बड़ा रोड़ा है।



चकबन्दी से क्या लाभ हैं इसका उल्लेख करना समय की बर्बादी है क्योंकि इसे हर व्यक्ति महसूस करता है और जानता भी है। संक्षेप में इसका उल्लेख किया जा रहा है।



ळरित क्रान्ति उत्तर प्रदेश,पंजाब हरियाणा,हिमाचल प्रदेश जो कि हमारे पहाड़ी राज्य हैं के अतिरिक्त देश के कई राज्यों में जहाँ चकबन्दी हो गयी है। या होगी इसका लाभ वहाँ के कृषक उठा रहे हैं। अन्यथा कृषकों को उन्नतशील बीज,खाद रसायन आप कितने ही उन्नत किस्म का दें जब तक उसके समुचित उपयोग की व्यवस्था नही है उसका अपेक्षित लाभ कृषक नही उठा सकता। इसके लिए आवश्यक है कि उसकी विखरी जोत इकट्ठा जी जावे।

श्वेत क्रान्ति भी इससे ही सम्बघित है अपने दूध देने वाले या अन्य जानवरों की समुचित ढंग से देखभाल वह अपने चक पर ही कर सकता है। उनके लिए चारे घास आदि की सुविधाजनक व्यवस्था जैसा कि अपने चक पर सकता है, विखरे खेतों से ऐसा करना संभव नही है। इन जानवरों की खाद को आज पहाड़ पर अपनी गौशाला से पहुँचाना एक बड़ा श्रम साध्य कार्य है जिसे अधिकांश पहाड़ की औरतें ही करती हैं इस अनावश्यक श्रम से उन्हें मुक्ति मिल सकती है।

श्रम वागवानी एंव फलोउद्याान :- अगर पहाड़ी कृषक की आर्थिक स्थिति में कोई चीज सुधार ला सकती है तो वह बागवानी और फल उद्याान से ही संभव है। चकबन्दी होने पर जहाँ कृषक अपने सिंचित या उपजाऊ चक पर सघन खेती कर अन्य का उत्पादन बढ़ा सकता है। वहीं कम उपजाऊ चक पर फलो के पौधे व साग सब्जी उगाकर उस चक का उपजाऊ ही नही बनायेगा अपितु उससे अच्छी खासी आमदानी भी प्राप्त कर सकेगा। जड़ी-बूटियों की खेती भी बिना चकबन्दी किए संभव नही है। यह बात अलग है है कि कतिपय कृषक आज भी फलो के बाग,बागवानी द्वारा सागसब्जी तथा जड़ी बूटियाँ पैदा कर लाभ अर्जित कर रहे हैं। लेकिन ऐसे कृषकों की संख्या नाममात्र की है। उनकी खेती लगभग इकट्ठा है और अन्य कृषकों की भांति विखरी हुई नही है। लेकिन यहाँ पर प्रश्न कतिपय कृषकों का नही है हर कृषक को आर्थिक रूप से मजबूत और खुशहाल बनाना होगा और इसका मात्र विकल्प चकबन्दी का किया जाना ही है।

      कृषक अपनी चको पर जहाँ सिंचाई की सुविधा नही है बारिश के पानी को इकट्ठा कर टैंक में जमा कर सकता है। यद्यपि टैंक बनाने के लिए उसे आर्थिक मदद की आवश्यकता होगी। लेकिन विखरे खेतो में लिए ऐसा करना संभव नही है।
      मतस्य पालन,कुक्कुट पालन,सुअर पालन एंव अन्य योजनायें भी वह अपनी आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए अपनाना चाहेगा परन्तु कहाँ और कैसे ? विकल्प एकमात्र चकबन्दी का किया जाना ही है।

      पहाड़ो पर ईंधन एक बड़ी समस्या है इसे प्राप्त करने के लिए जंगल झाडि़याँ का बड़े पैमाने पर दोहन किया जा रहा है। जिससे पर्यावरण पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। उद्यानीकरण इसका विकल्प काफी हद तक हो सकता है लेकिन इसके लिए चकबन्दी का किया जाना आवश्कयक है।

      आज पहाड़ का युवक बेरोजगारी के कठिन दौर से गुजर रहा है। उसके पास नौकरी के अलावा कुछ करने को नही है। जिसके लिए वह गाँव को छोड़ शहर की आरे पलायन कर रहा है। क्योकि उसकी भी कुछ अभिलाषायें हैं। वह भी बेरोजगार युवकों की तरह जीवन यापन करना चाहता है। पर कैसे करे ? कोई स्वच्छ साधन उसके पास नही है। न उसका बाग है न बगीचा और नही खेती करने हेतु इकट्ठा खेत। अनुचित सााधनों से धन कमाना वह अपनी विवशत समझता है। इसके लिए वह शराब की भट्टी चलाता है। शराब की तस्करी करता है। जंगली जानवरों को मारता है। उसके मांस और खाल को बेचता है,लकड़ी का अवैध धन्धा करता है। वह इस हद तक गिर गया है कि कभी-कभी पहाड़ की भोली-भाली युवतियों तक को बेचने से भी नही हिचकता है। गाॅव में अपन चैन को बर्बाद करता है। लोगों को झगड़े व मुकदमे बाजी में फंसाकर अपनी उल्लू सीधा करता है। इन क्रियाकलापों की ओर अधिकांश युवक आकर्षित हो रहे हैं।

      पहाड़ो पर अधिकांश कार्य का भार वहाँ की औरतों पर ही है। घर से लेकर खेतो व जानवरो की देखभाल का सारा कार्य वहाँ की औरतें ही करती हैं। उसे सुबह से लेकर रात तक चैन नही है। घर के लिए ईंधन,जानवरो के लिए चारा घरवालों के लिए खाना बनाना,मेहमानो की मेहमाननवाजी आदि सभी कार्य उसे ही करने पड़ते हैं। पहाड़ी नारी का शोषण चरम सीमा पर है। यदि चकबन्दी उसके यहाँ हुई होती ताक कम से कम घास-पात व खेती बाड़ी आदि के लिए उसे दर-दर नही भटकना पड़ता उसका बहुत बड़ा श्रम बचता जिससे उसका शोषण कम होता।

      लिखा तो बहुत कुछ जा सकता है और समय पर अनेको विवेकशील लोगों ने लिखा भी बहुत कुछ है। परन्तु आज तक उसका कोई लाभ हुआ हो ऐसा नजर नही आता। कारण जैसा कि मैं कई बार कह चुका हूँ कि पहाड़ो पर चकबन्दी करने के लिए शासन प्रशासन का एक स्पष्ट दृष्टिाकोण होना चाहिए। इसके लिए गम्भीरता से सोचना होगा और मानसिकता में परिवर्तन लाना होगा। तभी यह संभव हो पायेगा। स्वैच्छिक संस्थाओं (एन.जी.ओ.) को भी इस दिशा में बढ़-चढ़ कर आगे आना होगा।
      पहाड़ के कृषको की सच्ची हितैषी वही सरकार होगी जो अपने शासन काल में पहाड़ पर चकबन्दी योजना लागू कर दे।



आज दिनाक 18 अपैल 2012 का उत्तराखण्ड में चकबन्दी के मुदद्े पर एक आवश्यक बैठक कल्याणेश्वर धर्मशाला श्री नगर में कैप्टेन सतेसिंह सिंह भण्डारी की अध्यक्षता में सम्पन्न हुई जिसमें कि ’ गरीब क्रान्ति (एक आदंोलन) ’’पहाड़ो पर चकबन्दी कैसे-क्यो’ं पुस्तक का विमोचन किया गया। बैठक में चकबन्दी आंदोलन के प्रेरणता गणेश सिंह गरीब की मुहिम (चकबन्दी) को आगे बढ़ाने का फैसला लिया गया। बैठक में निम्न बिन्दुओं पर वक्ताआंे ने विचार रखे-

1. गणेश सिंह गरीब का कहना है कि उत्तराखण्ड में गाॅवों से हो रहे पलायन पर सरकारें अपना काम नही कर रही हैं तथा खेत जंगल,बंजर होते जा रहे हैं जोकि आने वाले समय के लिए घातक परिणाम होगा।
’गरीब’ जी का कहना है कि उत्तराखण्ड राज्य की मांग के पीछे एक मूल भावना चकबन्दी भी थी ताकि गंावो के लोागों को काम मिल सके और सम्पन्न हो सके।

2. बैठक मंे डाॅ अरविन्द दरमोला ने चकबन्दी के फायदों एंव बेरोजगारी दूर करने के लिए चकबन्दी ही एक व्यवस्था है। डाॅ दरमोला का कहना है कि यथाशीध्र एक कानून सरकार बनाये तथा उत्तराखण्ड को कृषि,जड़ी बूटी एंव फल-फूलो से सम्पन्न प्रदेश बनाया जा सकता है। इसके लिए सभी लोगों को जागरूक किया जायेगा।

3. रेखा अग्रवाल का कहना है कि अगर युवाओं को पहाड़ के प्रति अपना नाता रखना है तो चकबन्दी के साथ जुड़ना होगा तभी युवाओं को रोजगार एंव व्यवसाय प्रधान होगे। युवा पलायन कर रहे हैं और अपनी जन्मभूमि छोड़ रहे हैं जो कि चिन्ता का विषय है, चकबन्दी अनिवार्य होनी चाहिए।

4.चकबन्दी आन्दोलन के संयोजक युवा कार्यकर्ता कपिल डोभाल ने सरकार द्वारा लम्बे समय से लटकाई जा रही चकबन्दी की मांग कैसे लागू हो तथा अन्तिम लक्ष्य तक पहुँचाया जाय इस पर चर्चा की।

5. वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता अनिल स्वामी ने कहा कि चकबन्दी पर एक महत्वपूर्ण जनप्रतिनिधियों सामाजिक विशेषज्ञों एंव कृषि से सम्बन्धित वुद्धिजीवियों की एक बैठक की जायेगी तथा चकबन्दी के स्वरूप पर चर्चा होगी

6. जवान किसान मोर्चा के मीडिया प्रभारी सत्यपाल सिंह नेगी का कहना है कि अब मात्र बोलने से और भाषणों से काम नही होने वाला इसके लिए सरकारों एंव राजनैतिक दलों से जुड़े लोगों की मंशा सार्वजनिक की जानी चाहिए तथा जनप्रतिनियों पर दबाव बनाया जायेगा। उत्तराखण्ड की जवानी,पानी मिटटी तभी बचेगी जब चबन्दी लागू होगी।

बैठक में सर्वसम्मति से इस बात पर चर्चा हुई कि चकबन्दी का प्रारूप क्या हो, कैसे हो इसके लिए श्रीनगर गढवाल में एक गोष्ठी की जायेगी, जिसमें चकबन्दी से जुड़े लोगों विशषज्ञों को बुलाया जायेगा तथा इस सरकार के पास रखा जायेगा।

बैठक में गणेश सिंह गरीब,अनिल स्वामी,रेखा अग्रवाल,प्रेमदत्त नौटियाल,सत्यपाल सिंह नेगी मदनमोहन नौटियाल,पी.पी पैन्यूली,ललित कोठियाल,मदनलाल डंगवाल,रामजय असवाल,नवीन प्रकाश,डाॅ अरविन्द दरमोला,सतेसिंह भण्डारी,प्रेमप्रकाश उप्रेती, कपिल डोभाल,व्यापार सभा अध्यक्ष हिमांशु अग्रवाल,मुकेश अग्रवाल,राहुल नेगी,गम्भीर कठैत आदि सम्मानित लोग उपस्थित थे।