5 चकबंदी दिवस, जंतर मंतर, नई दिल्ली 2014

चकबन्दी दिवस 01 मार्च 2014 जंतर मंतर नई दिल्ली


उत्तराखंड में खेतों की चकबन्दी को लेकर ‘‘गरीब क्रान्ति’’ के कार्यकर्ताओं द्वारा जन्तर मन्तर नई दिल्ली में ‘‘चकबंदी दिवस’’ का आयोजन किया गया । जिसमें उत्तराखंड से जुड़े कई जाने माने सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं बड़ी संख्या में प्रवासियों ने भाग लिया। कार्यक्रम की शुरूआत स्थित गांधी समाधि पर प्रार्थना से शुरू हुई। जिसमें चकबंदी नेता गणेश सिंह गरीब, सर्वोदयी नेता धूम सिंह नेगी, बीज बचाओ आन्दोलन के विजय जड़धारी, मैती आन्दोलन के कल्याण सिंह रावत, किसान महासभा के गिरजा पाठक, किसान फैडरेशन के अध्यक्ष युद्धवीर सिंह रावत,पूर्व महाप्रबन्धक गढ़वाल मंडल विकास निगम सीएस नेगी, पूर्व बन्दोवस्त अधिकारी चकबन्दी कुंवर सिंह भंडारी,वरिष्ठ पत्रकार शंकर भाटिया, गरीब क्रान्ति के सहसंयोजक सतपाल नेगी आदि ने भाग लिया। इसके बाद जन्तर-मन्तर पर एक परिचर्चा का आयोजन किया गया। जिसमें विभिन्न वक्ताओं ने चकबंदी पर अपने विचार रखे।

कार्यक्रम में बोलते हुए चकबंदी आंदोलन के जनक गणेश सिंह गरीब ने कहा कि चकबंदी के अभाव में सरकारी योजनाएं जमीन पर नहीं उतर पा रही हैं, जिससे पैसे की बर्वादी हो रही है। गांव की आय खेती है, जब तक खेती को बढ़ावा नहीं दिया जायेगा तब तक गांवों की आय नहीं बढ़ेगी। जल जंगल जमीन पर स्थानीय लोगों का ही अधिकार होना चाहिए। उत्तराखंड में आज केवल डेढ़ लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि बची है। एक अनुमान के अनुसार चकबंदी के माध्यम से दो लाख लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान किये जा सकते हैं। पूर्व चकबंदी अधिकारी कुंवर सिंह भंडारी ने चकबंदी के विभिन्न तकनीकी पहलुओं पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि पहाड़ में चकबंदी नहीं हो सकती यह धारणा एकदम निर्मूल है। हिमाचल का उदाहरण हमारे सम्मुख है। जहां की जमीन पूरी तरह से आवाद है और वहां से नाममात्र का ही पलायन हुआ है।

कार्यक्रम में मैती आन्दोलन के प्रणेता कल्याण सिंह रावत ने कहा कि उत्तराखंड का विकास जनाकांक्षाओं के अनुरूप नहीं हुआ है, इस कारण यहां के लोग चकबंदी को लेकर आंदोलनरत हैं। पहाड़ की स्थिति आज यूपी के जमाने से भी बदतर हो गयी है। जंगली जानवरों एवं बिखरी जोतों के कारण पहाड़ में ने लोगों का खेती करना मुश्किल हो गया है। उत्तराखंड की जमीन में सोना उगाने की क्षमता है लेकिन उचित प्रबंधन के अभाव में उत्तराखंड में जमीन बर्वाद की जा रही है। सर्वोदय नेता धूम सिंह नेगी ने कहा कि जिस प्रकार हमने पहाड़ के जंगलो को बचाने के लिए हमने चिपको आन्दोलन चलाया उसी प्रकार पहाड़ की खेती को बचाने के लिए हमने चकबंदी आन्दोलन को चलाना होगा। जल जंगल जमीन पहाड़ की पूंजि है इसको बचाये बगैर पहाड़ का विकास नहीं हो सकता है। आज पहाड़ के लोगों की विकासवादी सोच में आयी आपदा के कारण पहाड़ विनाश की ओर जा रहा है। जल जंगल जमीन को हड़पकर लोगों में पैसा कमाने की भूख पैदा हो गयी है। उन्होंने प्रवासियों से अपील की कि रोजगार के लिए पलायन करना बुरा नही है लेकिन अपनी मिट्टी एवं जड़ों से दूर होना अच्छा नहीं है।

बीज बचाओ आन्दोलन के जनक विजय जड़धारी ने सवाल उठाया कि खेती पर है किसकी मार जंगली जानवर मौसम और सरकार। उन्होंने कहा कि आज बड़ी बड़ी कंपनियां आज इस ताक में हैं कि पहाड़ के लोग खेती छोड़ें और हम उस पर कब्जा करें। इसलिए लोगों को अपना रूझान खेती की ओर करना होगा। तभी पहाड़ की खेती को बचाया जा सकता है। श्री जड़धारी ने कहा कि घी-दूघ की नदियां बहाने वाले पहाड़ में अब ये चीजें मैदानों से आ रही हैं। मिश्रित खेती का समर्थन करते हुए उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन की मार सिर्फ मिश्रित खेती ही झेल सकती है। पहाड़ की खेती में विविधतापूर्ण है यदि यहां से खेती समाप्त होती है तो उससे पहाड़ के अनाजों की विविधता भी खत्म हो जायेगी। कुल मिलाकर चकबंदी का मतलब खेती की संस्कृति को बचाना है।

किसान महासभा के महामंत्री गिरिजा पाठक ने कहा कि आज पहाड़ को बर्वादी की ओर धकेलने वाली ताकतों की पहचान करने की आवश्यकता है। जब तक यहां की जल जंगल जमीन को बर्वाद करने वाली ताकतों को बेनकाब नहीं किया जायेगा तब तक उत्तराखंड का भला होने वाला नहीं है। उत्तराखंड में बर्वाद होती खेती की जमीन का जिक्र करते हुए श्री पाठक ने कहा कि सन 1964 में हुए बंदोबस्त के अनुसार उत्तराखंड में 14 प्रतिशत कृषि भूमि थी जो आज घटकर 6 प्रतिशत रह गयी है। स्पष्ट सोच, विचार एवं नीतियों के अभाव में उत्तराखंड का विकास नहीं हो रहा है। श्री पाठक का कहना था कि राज्य की पचास प्रतिशत कृषि भूमि 12 प्रतिशत लोगों के पास है एवं शेष 88 प्रतिशत लोगों के पास 50 प्रतिशत कृषि भूमि है।

पुरोला के पूर्व ब्लाॅक प्रमुख एवं स्वैच्छिक चकबंदी अपनाने वाले किसान युद्धवीर सिंह रावत ने कहा कि जब मै अपने विखरे खेतों से परेशान हो गया था तब मैने स्वैछिक चकबंदी अपनाने का फैसला किया इसके लिए संटवारे में मैने अपनी सिंचित भूमि के बदले असिंचित भूमि स्वीकार की। लेकिन आज इस असिंचित भूमि से ही मै सोना उगा रहा हूं। मेरा 28 लोगों का परिवार चकबंदी के कारण अच्छा जीवन जी रहा है। स्वैच्छिक चकबंदी के बाद आने वाली परेशानियों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि मेरे द्वारा अपनाए गये खेत सरकारी रिकार्ड में मेरे नाम पर दर्ज न होने के कारण मुझे सरकार योजनाओं का लाभ लेने में परेशानी आ रही है।

वरिष्ठ पत्रकार शंकर सिंह भाटिया ने कहा गत वर्ष आयी भारी आपदा से उत्तराखंड के पांच जिले बुरी तरह प्रभावित हुए। बाकी जनपद नहीं लेकिन सरकार ने धोखे से पूरे राज्य को आपदाग्रस्त घोषित कर दिया। आपदा के मारे लोग सर्द रातों में टैंट में रहने को मजबूर हैं और आपदा के लिए आये पैसे से गैर आपदाग्रस्त जिलों में सड़कें एवं फलाईओवर बनाये जा रहे हैं। भूमि सुधारपरिषद के पूर्व अध्यक्ष पूरणसिंह डगवाल ने कहा कि चकबंदी के कार्य में कुछ व्यवहारिक समस्यायें हैं जिनका कि समाधान खोजा जाना चाहिए। कर्मचारी यूनियन के पूर्व अध्यक्ष मंगल सिंह नेगी ने कहा कि चकबंदी की मांग को बगैर राजनीतिक इच्छाशक्ति के पूरा नहीं किया जा सकता है। पूरे उत्तराखंड को एक होकर सरकार पर दबाव बनाना होगा।

गरीब क्रांति के संयोजक कपिल डोभाल ने कहा पहली बार उत्तराखंड का किसान राष्टीय फलक पर आया है, इसलिए सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वह चकबंदी लागू करने की की दिशा में चरणवद्ध रूप से आगे बढ़े और नई पीढ़ी को संदेश दिया कि हमें अपने को पहचानना होगा, इतिहास को जानना होगा और माधो सिंह भण्डारी, विक्टोरिया क्राॅस गबर सिंह नेगी,दरवान सिंह नेगी, वीर चंन्द्र सिह गढ़वाली,दौलत राम खुगशाल,श्रीदेव सुमन भोलू भरदारी जैसे वीरों को याद कर आगे बढ़ना होगा जिससे कि हमारा पर्वतीय राज्य उत्तराखण्ड समृ़िद्ध के रास्ते पर अग्रसर हो सके।

कार्यक्रम में दायित्वधारी धीरेन्द्र प्रताप, देवेन्द्र बुढ़ाकोटी, एल मोहन, श्रीनगर से सत्यपाल सिंह, सीताराम बहुगुणा, रूद्रप्रयाग से सुन्दर भंडारी, चकराता से घ्वजवीर सिंह,हिमालय बचाओ आन्दोलन के समी समीर रतूड़ी, चंडीगढ़ से सुरेन्द्र सिंह, लुधियाना से सोबन सिंह मेहर, चन्डीगढ़ से सुरेन्द्र सिंह, दिल्ली पत्रकार संघ के सुनील नेगी, प्यारा उत्तराखंड के संपादक देव सिंह रावत, वरिष्ठ पत्रकार सुनील नौटियाल, चारू तिवारी संस्कृति प्रेमी दिनेश ध्यानी, गढ़वाली कवि ललित केसवान, जयपाल रावत छिपड़दा, शिवचरण मुंडेपी, प्रदीप सती, प्रताप शाही, जय सिंह रावत, जयप्रकाश बिष्ट, चन्द्रकान्त नेगी, सतीश नौटियाल, रमेश मुमुक्षु, गजेन्द्र सिंह चैहान जगमोहन जिज्ञासू, दीपक असवाल, प्रदीप रावत हेमन्त नेगी, देवेन्द्र सिंह रावत, सुनील कोटनाला, दर्शन सिंह नेगी, राजेन्द्र बत्र्वाल, शुरू रावत, महिला सामाजिक कार्यकर्ता अनुसूया रावत, वसुन्दरा नेगी, ने भाग लिया। कार्यक्रम का संचालन विनोद मनकोटी ने किया। आयोजन को सफल बनाने में उत्तरांचल युवा प्रवासी समिति दिल्ली ने अपना योगदान दिया।

कार्यक्रम के अंत में प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री उत्तराखंड के नाम एक खुला ज्ञापन पढ़ा गया जिसके माध्यम से सरकार को चकबंदी लागू करने की दिशा में पहल करने को कहा गया है ताकि पहाड़ में बंजर होती खेती एवं खण्डहर होते गांवों के सिलसिले को रोका जा सके ।



माननीय प्रधानमन्त्री भारत सरकार एवं

माननीय मुख्यमन्त्री उत्तराखण्ड सरकार के नाम

खुला ज्ञापन


मान्यवर,
आज हम उत्तराखण्डी लोग दिल्ली के जन्तर मन्तर पर यहां के गांवों के बुनियादी विकास के लिये दशकों से की जा रही चकबन्दी की मांग के समर्थन में एकत्रित हुये हैं। चकबन्दी की इस मांग को अब तक यहां की प्रत्येक सरकार ने स्वीकारा है लेकिन उस पर व्यवहारिक रूप से अमल करने का किसी भी सरकार ने कोई भी प्रयास नहीं किया। आजादी के बाद देश के अनेक प्रदेशों के साथ-साथ उ0प्र0 में भी चकबन्दी को अनिवार्य रूप से लागू किया गया जिससे किसानांे को लाभकारी खेती करने का अवसर प्राप्त हुआ। फलस्वरूप कृषि उत्पादन में 8 से 10 गुना वृद्धि हुई और हरित क्रान्ति का मार्ग प्रशस्त हुआ लेकिन वहीं उ0प्र के अभिन्न अंग उत्तराखण्ड को चकबन्दी के लाभ से वंचित रखा गया।

मान्यवर,
पर्वतीय क्षेत्र में चकबन्दी न होने से यहां के किसान सरकार की किसानोन्मुखी, ग्रामोन्मुखी व रोजगारोन्मुखी योजना से वंचित हैं। इससे एक ओर उप्र. के मैदानी क्षेत्र में खुशहाली आई वहीं चकबन्दी न होने से पहाडी क्षेत्ऱ कृषि व कृषि जन्य उत्पादन के मामले में पिछड़ता चला गया। इससे अनेक विसंगतियां पैदा हो गई हैं। खेतों के बिखराव के कारण यहां का किसान खेती से विमुख होने लगा परिणामस्वरूप खेत बंजर होने लगे और कृषि जन्य सभी रोजगार समाप्त प्रायः होने लगे। इससे पलायन की गति बढ़ी और गांव वीरान होने लगे।

मान्यवर,
उत्तराखण्ड के चिंतनशील लोग इस समस्या के समाधान हेतु भूमि की चकबन्दी करने के लिये लगातार आवाज उठाते आ रहे हैं। राज्य बनने से पूर्व यह मांग उ.प्र. सरकार के सम्मुख भी कई बार रखी गयी इस पर निर्णय भी हुआ लेकिन अमल नही किया गया। राज्य बनने के बाद भी यह मांग निरन्तर उठाई गयी और सरकारों ने भी इसे स्वीकारा फिर भी बात घोषणाओं तक सीमित है। पर्वतीय क्षेत्र से जिस गति से पलायन एवं खेती के बंजर होने का सिलसिला जारी है ऐसे में राज्य सरकार घोषणाओं की बजाय त्वरित कार्यवाही करे।

मान्यवर,
पहाड़ के विकास का रास्ता चकबन्दी के बगैर संभव नहीं है जिसे आज नहीं तो कल करना ही होगा। इस दिशा में देर क्यों हो रही है और क्यों कृषि विकास के नाम पर समय, शक्ति, बुद्धि और धन की बर्बादी करके लोगों को गुमराह किया जा रहा है? अतः हमारा निवेदन है -

1-      अगर सरकार उत्तराखण्ड का समुचित विकास कर गांवों को बसाना चाहती है तो चकबन्दी विषय पर अपनी नीति शीघ्र स्पष्ट करे।
2-      चकबन्दी कैसे हो, इसे लेकर विशेषज्ञों, विद्वतजनों व इसके समर्थकों से परामर्श करके शीघ्रतिशीघ्र इसका प्रारूप तैयार करवाया जाय।
3-      क्षेत्र की भौगोलिक, सामाजिक, आर्थिक, एवं सांस्कृतिक परम्पराओं को देखते हुये इसके नियम व कानून बनाये जायं।
4-      ग्राम स्तर से राज्य स्तर पर चकबन्दी की नियमावली के प्रारुप पर व्यापक चर्चा कराई जाये।
5-      चकबन्दी योजना का प्रारुप व नियमावली व उसके लागू करने की विस्तार से जानकारी जनता को दी जाये। इसके लिये व्यापक प्रचार-प्रसार हो ताकि शंकाओं का समाधान हो सके।
6-      कृषि व ग्रामीण विकास योजनाओं को मनरेगा से जोड़ा जाये तथा इनको बनाते समय चकबन्दी का आधार सुनिश्चित किया जाय।
7-      पर्वतीय क्षेत्ऱ में नई पीढ़ी को खेती से जोड़ने के लिये ठोस प्रयास किये जायंे एवं राज्य में कक्षा 6 से 12 तक की शिक्षा के पाठ्यक्रम में कृषि व औद्यानिकी जैसे विषय अनिवार्य रूप से शामिल किये जाये।
8-      चकबंदी की प्रकिया को आगे बढ़ाने के लिये सरकार लम्बे समय से प्रयासरत कार्यकर्ता श्री गणेश सिंह ‘गरीब’ व अन्य जानकार लोगों से भी बातचीत करे । सादर!

हम हैं समस्त चकबन्दी समर्थक
उत्तराखण्ड वासी