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GARIB KRANTI ABHIYAN UTTARKHAND


कृषि हमारे जीवन का आधार है जब किसान उत्पादन करता है तो उससे न केवल लोगों का पेट भरता है ब्लकि सबसे अधिक रोजगार सृजन का माध्यम भी कृषि ही है। उत्तराखण्ड में एक समय रोजगार का सबसे बड़ा माध्यम रही कृषि आज उजडती जा रही है समाप्त होती जा रही है। इससे अनेकोनक विसंगतियां पैदा होती जा रही हैं जो एक आने वाले कल के लिये अच्छा संकेत नहीं है। कृषि के प्रति बढ़ती अरुचि के अनेक कारण है। इससे मिलती जुलती स्थिति हिमाचल में कृषि व बागवानी उसका आधार है।

उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्र में कृषि की उपेक्षा का एक कारण यहां की जमीन का अनेक हिस्सों में बंटना है। यदि यहां की जमीन का एकत्रीकरण हो जाये तो लोग फिर से कृषि, बागवानी पशुपालन की ओर लौट सकते हंै और इससे क्रान्तिकारी बदलाव आ सकता है।



गरीब जी एक कर्मयोगी


उत्तराखण्ड चकबन्दी आन्दोलन की शुरुआत 1975 में सबसे पहले दिल्ली में अखिल भारतीय गढ़वाली प्रगतिशील संगठन के अधीन हुई। इस मूल मन्त्र को कर्मयोगी गणेशसिंह गरीब ने अपने जीवन का मिशन बनाया। और दिल्ली को अलविदा कह अपनी बंजर भूमि को अव्वल दर्जे की भूमि के साथ संटवारा करके कड़ी मेहनत से ‘‘चन्दन वाटिका’’ के नाम से आबाद कर लोगों के सम्मुख चकबन्दी का उदाहरण पेश किया।

लेकिन खेती किसानी की नई संस्कृति को जन्म देने के लिए सरकार की भागीदारी आवश्यक थी जो उसे कानूनी जामा पहना सकती थी। गरीब जी ने इस विचार को सरकार तक ले जाने 90 के दशक तक सामाजिक कार्यकर्ताओं, जनप्रतिनिधियों एवं शासन प्रशासन में बैठे लोगों को हजारों लोगों से सम्पर्क किया, सैकड़ों पत्र भेजे, दसियों गांवों में पदयात्रायें, विचार गोष्ठियां कीं और जनसंपर्क किया। विकास खण्ड, जिला एवं राज्य स्तर पर चकबन्दी कार्यकर्ताओं के सम्मेलन आयोजित किये। इस विचार के सााथ अनेक बुद्धिजीवी जुडे़ और इस आंदोलन में भागीदार बने जो कभी मजदूर कृषक संघ कभी मूल नागरिक किसान मंच एवं चकबन्दी परामर्श समिति आदि बैनरों के तले चला।

लम्बे जनजागरण के बाद योजना आयोग की संस्तुति पर उत्तरप्रदेश सरकार ने 1989 में उत्तराखण्ड के पहाड़ी क्षेत्रों में प्रयोग के तौर पर चकबन्दी करने का निर्णय लिया। बिना किसी दृष्टिकोण के यह विभाग लोगों को चकबन्दी के प्रति जागरूक न कर सके न और न कोई योजना ही बना सके और 1996 में यहां खुले चकबन्दी कार्यालय बन्द कर दिये गये।

1994 में जब पृथक उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन तेजी से उभरा तो पलायन पर लगाम लगाने के लिये सभी राजनीतिक दलों ने यह विश्वास दिलाया कि राज्य बनने पर इस विषय पर प्राथमिकता के साथ अमल होगा। अन्त में सन् 2000 में राज्य गठन कर दिया गया। यद्यपि अन्तरिम सरकार के समय इस दिशा में कोई प्रगति नहीं हुई किन्तु वर्ष 2002 में प्रदेश में चयनित सरकार ने इस समस्या के समाधान हेतु राजस्व मंत्री की अध्यक्षता में भूमि सुधार एंव चकबन्दी पर उच्च स्तरीय समिति की स्थापना की। सन 2003 में राजस्व मंत्री की अध्यक्षता में एक परामर्श समिति का गठन किया गया ताकि व इस राज्य में भूमि सुधार करने के लिए कोई प्रारूप लागू करे सके लेकिन इस दिशा में कोई ठोस प्रगति न हो सकी। फरवरी 2004 मंे राज्य सरकार ने चकबन्दी एवं भूमि सुधार परिषद का गठन किया लेकिन प्रारूप बनाने की दिशा में इस परिषद ने कुछ नहीं किया। सन् 2007 में नई सरकार के समय चकबन्दी परिषद की एक दो बैठकें की और स्वैच्छिक चकबन्दी करने की बात की। लेकिन आगे कुछ न हुआ। 2007 के बाद यह बात शिथिल पड़ने लगी क्यों कि जनदबाब ही न था।



गरीब क्रान्ति का आगाज-


इसके लिये ग्रामीण पृष्ठभूमि से निकले युवा कपिल डोभाल ने इस बात को आगे ले जाने का संकल्प लिया ताकि लोग अपने पहाड़ के बारे में मनन कर सकें। बंजर होते खेत खलिहान व खण्डहर होते गांवों के प्रति लोगों का ध्यान जा सके और लोग फिर से अपनी जड़ों की ओर लौट सके और पहाड़ सरसब्ज हों।

काफी विचार के बाद ‘ग्रामीण कृषि क्रान्ति के लिये एकीकृत आधार’ यानि ‘गरीब’ शब्द सामने आया जो स्वयं में गागर में सागर लिये हुये है। पहले गरीब क्रान्ति (एक आन्दोलन) से व उसके बाद गरीब क्रान्ति अभियान की यात्रा इसी विचार की देन है। इसके प्रेरणा श्रोत है चकबन्दी नेता गणेशसिंह ‘गरीब’ जिन्होंने अपना पूरा जीवन चकबन्दी की मांग के लिये समर्पित किया है। इससे चकबन्दी की मांग को मानो संजीवनी मिल गई।

पलायित लोगों के शहर व राज्य की अस्थाई राजधानी देहरादून से बेहतर इसका कोई विकल्प न था। इसलिये गरीब जी के जन्म दिन 1 मार्च 2012 से ध्यान खींचने के लिये वर्ष में 1 दिन “चकबन्दी दिवस” के रूप में मनाने की शुरुआत हुई, ताकि जनता की ओर से यह मांग उठ सके। इसकी शुरूआत देहरादून में दून अस्पताल में 1 मार्च को फल वितरण एवं लोगों से इस दिन अपने-अपने घरों में दिये-मोमबत्ती जलाने और गाँव गुठ्यार पर चर्चा करने की अपील की गयी थी, कुछ युवा वहां जुटे और पहली बार यह बात समाचार पत्रों कर सुर्खियां बनी। उसके बाद यह सिलसिला जारी क्या हुआ सरकार भी जागी और उसने इस बात को स्वीकार किया है।

इस मिशन के 2012 में गठन एवं लक्ष्य को जानने के बाद से इसमें अनेकों राज्य व बाहर से सक्रिय, चिंतनशील, समर्पित लोग व बुद्धिजीवी जुड़े। चूंकि चकबन्दी सरकारी स्तर पर होने वाली प्रक्रिया है। सरकार अपनी बात के प्रति शिथिल न पड़ जाये इसलिए इस अभियान के द्वारा अनेकानेक स्तर से इस आवाज को उठाया जाता रहा है। सरकार को समय समय पर अवगत कराने के लिये ज्ञापन देने, समय-समय पर पर्चे पोस्टर जारी करना, पुस्तक प्रकाशन, गोष्ठी, परिचर्चा, चकबन्दी दिवस मनाना इस संगठन की प्रमुख गतिविधियां है।

2013 का चकबन्दी दिवस देहरादून में मनाया गया था। जबकि 2014 का चकबन्दी दिवस उत्तरांचल युवा प्रवासी समिति दिल्ली के सहयोग से जन्तर-मन्तर दिल्ली में मनाया गया। इससे चकबन्दी अभियान को एक नई गति मिली है। सोशियल मीडिया से लेकर प्रिन्ट माध्यमों में आज यह अभियान देश ही नहीं बल्कि विदेश में रह रहे उत्तराखण्डियों के घरों में भी दस्तक देने में कामयाब हो रहा है।

चकबन्दी दिवस के माध्यम से अभियान का मकसद सरकार उत्तराखण्ड में जमीन की विसंगतियांे को लेकर आ रही समस्याओं को लेकर चकबन्दी की मांग को आगे बढाना है,ताकि इसे लेकर विभिन्न प्रकार की शंकाओं व समस्याओं पर व्यापक चर्चा हो सके तथा इसके एक-एक बिन्दु पर चर्चा के बाद राज्य का चकबन्दी का प्रारूप व नियमावली बन सके। विसंगतियां दूर करने के लिये यह एक बार जनता के बीच आये ताकि कारगर व व्यवहारिक सुझाव चकबन्दी नियमावली में शामिल हों। और व्यवहारिक रूप से राज्य में चकबन्दी लागू करने का रास्ता साफ हो सके।

विगत चार वर्षो में यह अभियान जनसहयोग से इस विचार को आगे ले जाने में जी जान से इस कार्य में लगा है और इसका परिणाम है कि आज बंजर खेतों व पलायन राज्य में सबसे चर्चित विषय न गया है और अब सकारात्मक बातंे सुनने में आ रही है। गांव के जटिल भूमि मसले का सकारात्मक हल निकले और लोगों में कृषि करने की प्रवृत्ति जगाना हमारा दूरगामी मकसद है, एऔर तभी ‘गांव खुशहाल तो राज्य खुशहाल’ हमारे अभियान का मूलमन्त्र है। संगठन का दूरगामी लक्ष्यों को ध्यान में रखकर आगे बढ़ रहा है। ताकि गांवों के आबाद होने का सपना साकार हो सके।



हमारे उददेश्य-


  • 1- प्रभावी तौर पर चकबन्दी को लागू कराने के लिये संकल्पित

  • 2- जनजागरण के जरिये चकबन्दी के लिये वातावरण सृजन

  • 3- सरकार के सम्मुख मूल एवं नये सुझावों को रखना

  • 4- खेती करने में सामने आ रही बाधाओं के समाधान के लिये प्रयास

  • 5- क्लस्टर आधारित कृषि की परिकल्पना को सामने लाना।


  • 7- राज्य के कृषि उत्पादों के जरिये स्वावलम्बन की दिशा में जनजागरण

  • 8- जमीन पर विचारों को फलीभूत करना।



  • गरीब क्रान्ति अभियान का स्वरूप-


    इसका वर्तमान स्वरूप अपंजीकृत संस्था का है किन्तु कालान्तर में इसे ट्रस्ट बनाने के विचार है, ताकि इस अभियान को संगठनात्मक रूप में चलाया जा सके।



    ध्वज-


    गरीब क्रान्ति अभियान का एक झंडा है। इस झण्डे में ध्वज की पृष्ठ भूमि में हरा रंग समृद्धि का प्रतीक है। ध्वज के दोनों किनारों पर मंडुवे (कोदे) की बालियाँ हैं जो कि पहाड़ की पारम्परिक कृषि के स्वरूप को दर्शाती हैं, बीच में रणसिंहा यहाँ की संस्कृति का प्रतीक एवं एक नई क्रान्ति की शुरूआत का संदेश दे रहा है सफेद रंग से लिखा गया ‘‘गरीब क्रान्ति’’ शान्ति का और गुलाबी रंग से ‘‘एक आन्दोलन’’ संदेश देता है सामाजिक समरसता का प्रेम का। ध्वज में एक छोटा सा दीपक प्रतीक है उस लौ का कि एक दिन तो समृद्ध पर्वतीय राज्य उत्तराखण्ड का सपना साकार होगा और यहाँ की जवानी और पानी यहाँ के काम आएगी।

            समृद्ध उत्तराखण्ड के सपने को साकार करने के लिये आपका सहयोग आपेक्षित है ।

                                                                                                                                                                                              एल मोहन कोठियाल
                                                                                                                                                                                             संयोजन सचिव
                                                                                                                                                                                             गरीब क्रान्ति अभियान उत्तराखण्ड